शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

भारतीय वैज्ञानिको की रहस्यमयी मौतें

भारत विज्ञान के पथ पर आगे बढ़ रहा है, परंतु प्रगति का यह मार्ग लगता है खून से रंगा जा रहा है । पंद्रह वर्षो में देश के उच्च कोटि के वैज्ञानिको व विज्ञान से जुड़ी खोज संस्थाओं में 197 वैज्ञानिको व कर्मचारियो ने आत्महत्या की है और 1733 की मौत गंभीर बिमारियों से हुई । इसमें से भारतीय परमाणु ऊर्जा मुंबई के उच्च कोटी के 13 वैज्ञानिको और कर्मचारियों ने आत्महत्या की है और 346 की विभिन्न कारणो से मौत हुई । इन सभी मौतों पर संदेह नहीं प्रकट किया जा सकता, परंतु कुछ ऐसी घटनाएं भी हो रही हैं जो किसी षड़यंत्र के होने की आशंका प्रकट कर रही है ।

1) मृतको के नाम- श्री अभिष व श्री के.के.जोश
पद-श्री अभिष कुमार भारत की पहली परमाणु जनित ऊर्जा चलित पनड़ुब्बी 'अरिहंत' के मुख्य अभियंता (चीफ इंजीनियर) थे जबकि श्री जोश जहाज निर्माण के मुख्य अभियंता थे ।
मौत कैसे हुई-दोंनो की मौत विष से हुई । इनकी लाशो को रेल की पटरियों पर फेंक दिया गया । पूरी आशंका है कि इन प्रतिभावान युवा वैज्ञानिको की हत्या की गई । बाद में इस घटना को दुर्घटना मान लिया गया ।
ह्त्या का संभावित कारण- दोंनो वैज्ञानिक अपने क्षेत्रों में स्वदेशी तकनीक विकसित करने में लगे थे ।

2) मृतक का नाम- श्री अमित कुमार
पद-बारक में वैज्ञानिक
मौत कैसे हुई-मार्च 2013 में हुई सड़क दुर्घटना में ।

3) मृतक का नाम- श्री ए.जी. पोद्दार
पद- वरिष्ठ वैज्ञानिक
 मौत कैसे हुई- 27 मार्च 2008 को सड़क दुर्घटना में। परिवार के लोगो ने हत्या की आशंका जताई परंतु पुलिस ने इसे दुर्घटना मान कर फाइल बंद कर दी ।

4) मृतक का नाम-एल. महालिंगम
पद- कैगा परमाणु ऊर्जा केन्द्र (कर्नाटक) के वरिष्ठ वैज्ञानिक
मौत कैसे हुई- 8 जून 2009 को सुबह सैर के लिए गए पर वापिस नहीं लौटे । पांचवे दिन लाश काली नदी के किनारे क्षत-विक्षिप्त अवस्था में मिली । लाश कि पहचान ड़ी.एन.ए. द्वारा हो पाई पर पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला मान लिया ।

5) मृतको के नाम- श्री उमंग सिंह, श्री पार्थ प्रितम ।
मौत कैसे हुई- काम करते समय प्रयोगशाला में आग लगी । आग लगने का कारण अभी अज्ञात है । प्रयोगशाला में कोई ज्वलनशील पदार्थ भी नहीं मिला । पुलिस इसे दुर्घटना बता रही है ।

6) इसी तरह 22 फरवरी 2010 को मुंबई स्थित आनंद भवन के स्टाफ क्वार्टर में मैकेनिकल इंजीनियर श्री एस.पी.नैयर मृत मिले । पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या की बात सामने आने के बावजूद पुलिस इसे दुर्घटना मान रही है ।
3 मार्च 2010 को एक युवा महिला वैज्ञानिक सुश्री तीतम पाल की लाश कोलकाता में उनके क्वार्टर में झुलती मिली । इस मामले को भी आत्महत्या मान कर ठप कर दिया गया ।

7) 25 अगस्त,2007 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र (इसरो) के वैज्ञानिक राजीव लोचन व श्री कृष्ण मूर्ति श्री हरिकोटा प्रक्षेपण केन्द्र के लिए अपनी कार से रवाना हुए ।
सितंबर महीने में यहां उपग्रह इनसैट 4 सी.आर. को जीएसएलवी से प्रक्षेपित किया जाना था ।
रास्ते में हुई सड़क दुर्घटना में वैज्ञानिक श्री लोचन का स्वर्गवास हो गया और श्री कृष्णामूर्ति गंभीर रूप से घायल हो गए ।

8) मध्यप्रदेश के सतना में तैनात इसरो के वैज्ञानिक डॉ. दिवाकर तिवारी की नदी में बहने से मौत हो गई जो कि पूरी तरह संदेह के दायरे में है ।

हमारे देश में जिन वैज्ञानिको की मौत हृदयघात और अन्य बिमारियों के चलते बताई जा रही है, उनमें अधिकतर 24 से 40 वर्ष की आयु के थे । इतनी छोटी आयु में इतने बड़े पैमाने पर हृदयघात समझ से परे है ।
कुछ देशो को हमारी वैज्ञानिक प्रगती पच नहीं रही । कहीं इनके पीछे हमारे पड़ोसी देश या हमें तकनीक का निर्यात करने वाले देश तो नहीं  ?
कहीं अलकायदा, तालिबान, इंड़ीयन मुजाहिद्दीन जैसे संगठन इन कार्यो को अंजाम तो नहीं दे रहे ?

हर छोटी बड़ी घटना पर टी वी चैनलो पर चर्चा करने वाले बयान बहादुर हमारे राजनैतिज्ञ और फिजूल की बातों को 'ब्रेकिंग न्यूज़' बताने वाला मीड़िया इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर मौन क्यो है ? केवल वैज्ञानिक ही क्यों हर अप्राकृतिक मौत की जांच होनी चाहिए और उसकी सच्चाई संबंधित परिवार और समाज के सामने लाई जानी चाहिए । आखिर यह काम कौन करेगा और सोई हुई व्यवस्था को कौन जगाएगा ?

शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

1984 दंगे नहीं नरसंहार

31 अक्टूबर 1984 को 2 सिख बॉड़ीगार्ड द्वारा इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी गई । हत्या ऑपरेशन ब्लु स्टार के जवाब में 153 वें दिन हुई । हत्या का कारण केवल एक था - श्री हरमिंदर साहेब स्वर्ण मंदिर जैसे पवित्र स्थान पर तोप और बंदूको के साथ प्रवेश । ऑपरेशन ब्लू स्टार का उद्देश्य भिंड़रवाला का खात्मा था । भिंड़रवाला को खुद इंदिरा गाँधी ने अपनी राजनैतिक महत्वाकांशाओ के चलते खड़ा किया था इंदिरा गाँधी अकालियो के नेतृत्व को समाप्त करना चाहती थी । पर पाकिस्तानी ताकतो से मिल रही हवाओ के चलते भिंड़रवाला के नेतृत्व में अलगाववादी ताकते जन्म लेने लगी और ऑपरेशन ब्लु स्टार को अंजाम देना पड़ा ।



इस कृत्य के 153 वें दिन इंदिरा गाँधी की मृत्यु निश्चित थी । फिर चाहे इंदिरा को उसके अंगरक्षक मारते या कोई और । अब तक स्वर्ण मंदिर पर 5 बार आक्रमण हुए और हर आक्रमणकारी 153 वें दिन मृत्यु को प्राप्त हुआ । मस्सा रंगड़ फिर जकरिया खान फिर जहान खान फिर अहमद शाह अब्दाली और अंत में इंदिरा गाँधी सिखो ने हर उस इंसान का खात्मा किया जिसने उनकी आस्था से खिलवाड़ किया ।

यह फोटो ग्वालियर के एक गुरूद्वारे से ली गई है, इसे देखकर आप इस तथ्य को समझ जाऐंगे ।



ये तो बात हुई इंदिरा गाँधी की मृत्यु की परंतु इसके पश्चात जो हुआ वो भारत माँ की छाती पर एक कलंक छोड़ गया । भारत माँ के वो बच्चे जिन्होने उसकी आजादी के लिए सबसे अधिक बलिदान दिए, जिनकी आबादी 2 % होकर भी भारतीय सेना में ये 11 % हैं ऐसे वीरो का कत्लेआम हुआ ।

इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद -
सुबह 9.20 बजे दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कों उनके 2 सिक्ख बॉडीगार्ड सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने गोलियों से छलनी कर दिया। उन्हें तुरंत एम्स (AIIMS) अस्पताल में भरती कराया गया।सुबह 10.50 बजे इंदिरा गाँधी का एम्स अस्पताल में निधन हो जाता है ।सुबह 11.00 बजे ऑल इंडिया रेडियो पर यह खबर प्रसारित हुई की इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो सिख बॉडीगार्डो ने की और पुरे भारत में मातम छा जाता है ।

इस तनावपुर्ण माहौल में राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी जाती है । वंशवाद की एक और मिसाल कायम होती है । देश में सिखो पर छोटे - मोटे हमले होते दिखते हैं । इस हिंसा पर जब दुरदर्शन पर राजीव गाँधी से सवाल पुछा जाता है तो वो जवाब देते हैं - "जब जंगल मे कोई बड़ा पेड गिरता है तो आसपास की जमीन हिलने लगती है और छोटे मोटे पेड उखड जाते है " । इससे दंगो के पक्ष में उनका मत स्पष्ट हो जाता है ।

इन दंगो के समय भारत के राष्ट्रपती एक सिख "ज्ञानी जैलसिंह" ही थे ।सिख दंगो की जाँच कमेटी के सामने राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिह ने कहा कि उनके फ़ोन की लाईने काट दी गई थी... ताकि दिल्ली के सिख दंगों का समाचार उन तक नहीं पहुँच सके । इससे पहले उन्होने राजिव गाँधी से कई बार बात की और उन्हे सेना की सहायता लेने को कहा पर राजीव ने उनकी बात को टाल दिया।


रात में कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार, ललित माकन, H.K.L.भगत ने दंगाईयो कों संगठित कर उन्हें पैसे, तलवार, लाठियाँ, सलाखे मुहैया करवाई। जो कांग्रेसी नेता पेट्रोल पम्प के मालिक थे, उन्होंने दंगाईयो कों केरोसिन और पेट्रोल के कैन की आपूर्ति की। सिखो के घरों का पता जानने के लिये कांग्रेस नेताओं ने दंगाईयो कों वोटर कार्ड और राशन कार्ड दिए। कांग्रेसी कार्यकर्ताओ ने रात में सिक्खो के घरों पर “s” के निशान बना दिए। ताकि दूसरे दिन दंगाई जल्द से जल्द सिखो के घरों की पहचान कर, घरों में घुसकर सिखो का कत्लेआम कर सके।



1 नवम्बर 1984, दंगो का दूसरा दिन
सुबह सुबह कांग्रेस के सांसद सज्जन कुमार ने कांग्रेसी कार्यकर्ता, गुंडे और दंगाइयो को लेकर रैली निकाली, और सरेआम मासूम सिखो का क़त्ल करने के लिये नारे लगाये। सज्जन कुमार ने सिक्खो की हत्या करने वालों कों इनाम घोषित किये, कहा एक भी सिख जिन्दा ना बच पाए । प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने दंगाईयो से वादा किया कि उन्हे कांग्रेस में उच्च पद दिए जाऐंगे ।
इस नरसंहार में सबसे आगे पुलिस थी, पुलिस सिखो को मारने दंगाईयो की मदद करती थी ।
रैलगाड़ी, बसे रोक कर उनमे सवार सिक्खो कों जिन्दा जलाया गया । त्रिलोकपुरी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी इलाको में सबसे ज्यादा सिख मारे गए ।




2 नवम्बर 1984, दंगो का तीसरा दिन
दिल्ली के कुछ इलाको में कर्फ्यू लगाया गया, लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं था। क्योकि पुलिस दंगाईयो पर कारवाई करने के बजाय उल्टा उन्हे मदद करने के आदेश दिए गये थे। आर्मी बुलाई गई पर उन्हे सख्त आदेश थे कि वो दंगाईयो पर फाइरिंग ना करे । सिखो का नरसंहार जारी रहा।


3 नवम्बर 1984, दंगो का चौथा दिन
जब दंगाई अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेती है, तब सेना और पुलिस स्थिति पर नियंत्रण करना शुरू कर देती है। छिट पुट घटनाओ कों छोड़कर शाम तक दंगे थम जाते है। दिल्ली में सिख की लाशो का अम्बार लग जाता है। 3 नवम्बर तक 2,700 से 20,000 सिख मारे गये। उन लाशो कों एम्स अस्पताल ले जाया जाता है।




दंगो की जाँच
दंगो की जांच के लिये मारवाह कमीशन, मिश्रा कमीशन, मित्तल कमिटी, नानावटी आयोग और कई अन्य आयोगों का गठन किया गया। आयोग और कोर्ट ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता सज्जन कुमार, R.K.आनंद, ललित माकन, H.K.L.भगत और कांग्रेस पार्टी कों दंगे भडकाने और दंगाईयो कों मदद करने के आरोप में सीधा सीधा दोषी ठहराया। लेकिन पुलिस और कांग्रेसी सरकारों ने कोई कारवाई नहीं की। कांग्रेस नेता जगदीश टायटलर के खिलाफ चल रहे सभी केस कोर्ट ने 2007 में पुख्ता सबूतों के अभाव में बंद कर दिए और उन्हें बरी कर दिया।
दंगो के बाद लगभग 250 FIR दर्ज की गई पर सरकार के कहने पर इन्हे रिकार्ड से हटा दिया गया ।



कांग्रेस ने इन दंगो के लिए कभी ना खेद जताया ना किसी प्रकार की हमदर्दी । सिख आज भी न्याय की आस में भटक रहे हैं । हिन्दू और सिख हमेशा भाई भाई की तरह रहा है । दोनो ने इस मातृभूमि के लिए रक्त बहाया है .. यह एक षड़यंत्र ही था भाई को भाई के हाथ मरवाने का । अपनी सियासी रोटियाँ सेकने का ।

खुद को अल्पसंख्यको की सबसे बड़ी हमदर्द बताने वाली इस पार्टी की नज़र में क्या केवल मूसलमान अल्पसंख्यक हैं । गुजरात दंगो पर नरेन्द्र मोदी को घेरने वाली ये कांग्रेस कभी अपने गिरेबान में क्यो नहीं झाकती । दंगो में सिखो की हत्या करने वाले लोग आज कांग्रेस में उच्च पदो पर बैठे हैं । क्या कांग्रेस के पास इसका जवाब है ?