रविवार, 29 सितंबर 2013

कांग्रेस की स्थापना का सच


28 दिसम्बर, 1885 ई. को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अवकाश प्राप्त आई.सी.एस. अधिकारी स्कॉटलैंड निवासी ऐलन ओक्टोवियन ह्यूम (ए.ओ. ह्यूम) ने ‘थियोसोफ़िकल सोसाइटी’ के मात्र 72 राजनीतिक कार्यकर्ताओं के सहयोगसे की थी। यह अखिल भारतीय स्तर पर राष्ट्रवादकी पहली सुनियोजित अभिव्यक्ति थी। आखिर इन 72 लोगो ने कांग्रेस की स्थापना क्यों की और इसके लिए यही समय क्यों चुना? यह प्रश्न के साथ एक मिथक अरसे से जुड़ा है, और वह मिथक अपने आप में काफ़ी मज़बूती रखता है। ‘सेफ़्टीवाल्ट’ (सुरक्षा वाल्व) का यह मिथक पिछली कई पीढ़ियों से विद्यार्थियों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के जेहन में घुट्टी में पिलायाजा रहा है। लेकिन जब इतिहास की गहराईयों को झाँकते हैं, तो पता चलेगा कि इस मिथक में उतनादम नहीं है, जितना कि आमतौर पर इसके बारे में माना जाता है।

मिथक यह है कि ए.ओ. ह्यूम और उनके 72 साथियों ने अंग्रेज़ सरकार के इशारे पर ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। उस समय के मौजूदा वाइसराय लॉर्ड डफ़रिन के निर्देश, मार्गदर्शन और सलाह पर ही हयूम ने इस संगठन को जन्म दिया था, ताकि 1857 की क्रान्ति की विफलता के बाद भारतीय जनता में पनपते असंतोष को हिंसा के ज्वालामुखी के रूप में बहलाने और फूटने से रोका जा सके, और असतोषकी वाष्प’ को सौम्य, सुरक्षित, शान्तिपूर्ण औरसंवैधानिक विकास या ‘सैफ्टी वाल्व’ उपलब्ध कराया जा सकें।

‘यंग इंडिया’ में 1961 प्रकाशित अपने लेख में गरमपथी नेता लालालाजपत राय ने ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल कांग्रेस की नरमपंथी पक्ष पर प्रहार करने के लिये किया था। इस पर लंम्बी चर्चा करते हुए लाला जी ने अपने लेख में लिखा था कि “कांग्रेस लॉर्ड डफ़रिन के दिमाग की उपज है।” इसके बाद अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने लिखा था कि “कांग्रेस कीस्थापना का उद्देश्य राजनीतिक आज़ादी हासिल करने से कही ज़्यादा यह था कि उस समय ब्रिटिश साम्राज्य पर आसन्न खतरो से उसे बचाया जा सकें।” यही नहीं उदारवादी सी. एफ. एंड्रूज और गिरजा मुखर्जी ने भी 1938 ई. में प्रकाशित ‘भारत में कांग्रेस का उदय और विकास में सुरक्षता बाल्ब’ की बात पूरी तरह स्वीकार की थी।
1939 ई. में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के संचालक एम.एस. गोलवलकर ने भी कांग्रेस की धर्म-निरपेक्षता के कारण उसे गैर-राष्ट्रवादी ठहराने के लिए ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल किया था।उन्होंने अपने परचे ‘वी’ (हम) में कहा था कि हिन्दू राष्ट्रीय चेतना को उन लोगो ने तबाह कर दिया, जो राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं।’ गोलवलकर के अनुसार, ह्यूम कॉटर्न और वेडरबर्न द्वारा 1885 ई. में तय की गई नीतियाँ ही ज़िम्मेदार थीं- इन लोगो ने उस समय उबल रहे राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़ सुरक्षा वाल्व के तौर पर कांग्रेस की स्थापना की थी।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013



शहीद भगत सिंह के लेख एवं दस्तावेज



क्रन्तिकारी कार्यक्रम का मसौदा 1931                                          
कुलबीर के नाम अंतिम पत्र 1931                                       

गुरुवार, 26 सितंबर 2013


हिन्दू सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं ?


लोगों को इस बात की बहुत बड़ी गलतफहमी है कि हिन्दू सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं | लेकिन ऐसा है नहीं और, सच्चाई इसके बिलकुल ही विपरीत है | 
दरअसल हमारे वेदों में उल्लेख  33 “कोटि” देवी-देवता का है |
अब “कोटि” के दो अर्थ होते है- १. “प्रकार” और २.“करोड़”
तो लोगोँ ने उसे हिंदी में करोड़ पढना शुरू कर दिया जबकि वेदों का तात्पर्य 33 कोटि अर्थात 33 प्रकार के देवी-देवताओं से है (उच्च कोटि.. निम्न कोटि इत्यादि शब्द तो आपने सुना ही होगा जिसका अर्थ भी करोड़ ना होकर प्रकार होता है)
ये एक ऐसी भूल है जिसने वेदों में लिखे पूरे अर्थ को ही परिवर्तित कर दिया |
इसे आप इस निम्नलिखित उदाहरण से और अच्छी तरह समझ सकते हैं |
अगर कोई कहता है कि बच्चों को “कमरे में बंद रखा” गया है | और दूसरा इसी वाक्य की मात्रा को बदल कर बोले कि बच्चों को कमरे में ” बंदर खा गया ” है| (बंद रखा= बंदर खा)
कुछ ऐसी ही भूल अनुवादकों से हुई अथवा दुश्मनों द्वारा जानबूझ कर दिया गया ताकि, इसे HIGHLIGHT किया जा सके |

सिर्फ इतना ही नहीं हमारे धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफ उल्लेख है कि “निरंजनो निराकारो एको देवो महेश्वरः” अर्थात इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं जो निरंजन निराकार महादेव हैं |

साथ ही यहाँ एक बात ध्यान में रखने योग्य बात है कि हिन्दू सनातन धर्म मानव की उत्पत्तिके साथ ही बना है और प्राकृतिक है इसीलिए हमारे धर्म में प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीना बताया गया है और प्रकृति को भी भगवान की उपाधि दी गयी है ताकि लोगप्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करें|
जैसे कि :
1. गंगा को देवी माना जाता है क्योंकि गंगाजल में सैकड़ों प्रकार की हिमालय की औषधियां घुली होती हैं |
2. गाय को माता कहा जाता है क्योंकि गाय का दूध अमृत तुल्य और, उनका गोबर एवं गौ मूत्र में विभिन्न प्रकार की औषधीय गुण पाए जाते हैं |
3. तुलसी के पौधे को भगवान इसीलिए माना जाता है कि तुलसी के पौधे के हर भाग में विभिन्न औषधीय गुण हैं |
4. इसी तरह वट और बरगद के वृक्ष घने होने के कारण ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं और, थके हुए राहगीर को छाया भी प्रदान करते हैं|
यही कारण है कि हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रकृति पूजा को प्राथमिकता दी गयी है क्योंकि, प्रकृति से ही मनुष्य जाति है ना कि मनुष्य जाति से प्रकृति है |
अतः प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा करना सर्वथा उपर्युक्त है |
यही कारण है कि हमारे धर्म ग्रंथों में सूर्य, चन्द्र, वरुण, वायु, अग्नि को भी देवता माना गया है और इसी प्रकार कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैं |
इसीलिए, आप लोग बिलकुल भी भ्रम में ना रहें क्योंकि ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं जो निरंजन निराकार महादेव हैं|


अतः कुल 33 प्रकार के देवता हैं :12 आदित्य है : धाता, मित्, अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा, एवं विष्णु|

8 वसु हैं : धर, ध्रुव,सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष एवं प्रभाष

11 रूद्र हैं : हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, अपराजिता, वृषाकपि, शम्भू, कपर्दी, रेवत, म्रग्व्यध, शर्व तथा कपाली|

2 अश्विनी कुमार हैं|कुल : 12 +8 +11 +2=33

बुधवार, 25 सितंबर 2013

गर्व  से कहो, हम हिन्दू हैं

अक्सर हम हिन्दू लोगों को बरगलाने के लिए…. हमें यह सिखाया जाता है कि… “हिन्दू” शब्द….. हमें… मुस्लिमों या फिर कहा जाए तो… अरब वासियों ने दिया है…!
दरअसल… ऐसी बातें करने के पीछे कुछ स्वार्थी तत्वों का मकसद यह रहा होगा कि… हिन्दू… अपने लिए “हिन्दू” शब्द सुनकर… खुद में ही अपमानित महसूस करें… और, हिन्दुओं में आत्मविश्वास नहीं आ पाए… फिर… हिन्दुओं को खुद पर गर्व करने या… दुश्मनों के विरोध की क्षमता जाती रहेगी …!
और, बहुत दुखद है कि…. समुचित ज्ञान के अभाव में… बहुत सारे हिन्दू भी… उसकी ऐसी … बिना सर-पैर कि बातों को सच मान बैठे हैं… और, खुद को हिन्दू कहलाना पसंद नहीं करते हैं… जबकि, सच्चाई इसके बिल्कुल ही उलट है…!
हिन्दू शब्द… हमारे लिए… अपमान का नहीं बल्कि… गौरव की बात है… और, हमारे प्राचीन ग्रंथों एक बार नहीं… बल्कि, बार-बार “हिन्दू शब्द” गौरव के साथ प्रयोग हुआ हुआ है….!
वेदों और पुराणों में हिन्दू शब्द का सीधे -सीधे उल्लेख इसीलिए नहीं पाया जाता है कि… वे बेहद प्राचीन ग्रन्थ हैं… और, उस समय हिन्दू सनातन धर्म के अलावा और कोई भी धर्म नहीं था… जिस कारण… उन ग्रंथों में .. सीधे -सीधे … हिन्दू शब्द का उपयोग बेमानी था..!
साथ ही… वेद .. पुराण जैसे ग्रन्थ… मानव कल्याण के लिए हैं… हिन्दू-मुस्लिम- ईसाई … जैसे क्षुद्र सोच उस समय नहीं थे…. इसीलिए … उन ग्रंथों में ….हिन्दू शब्द पर ज्यादा दवाब नहीं दिया है… लेकिन प्रसंगवश ..हिन्दू और हिन्दुस्थान शब्द का उल्लेख वेदों में भी है..!
@@ ऋग्वेद में एक ऋषि का नाम “सैन्धव” था जो बाद में “हैन्दाव/ हिन्दव” नाम से प्रचलित हुए… जो बाद में अपभ्रंश होकर “”हिन्दू”" बन गया..!
@@ साथ ही…. ऋग्वेद के ही ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द इस प्रकार आया है…
हिमालयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।
( अर्थात….हिमाल य से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिन्दुस्थान कहते हैं )
@@ सिर्फ वेद ही नहीं … बल्कि.. मेरु तंत्र ( शैव ग्रन्थ ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है….
‘हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये’
( अर्थात… जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं )
@@ इतना ही नहीं…. लगभग यही मंत्र यही मन्त्र शब्द कल्पद्रुम में भी दोहराई गयी है…..
‘हीनं दूषयति इति हिन्दू ‘
( अर्थात… जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं )
@@ पारिजात हरण में “हिन्दू” को कुछ इस प्रकार कहा गया है |
हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टम ¡
हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिंदुरभिधियते ।।
@@ माधव दिग्विजय में हिन्दू शब्द इस प्रकार उल्लेखित है ….
ओंकारमंत्रमूलाढ्य पुनर्जन्म दृढाशयः ।
गोभक्तो भारतगुरू र्हिन्दुर्हिंसनदूषकः ॥
( अर्थात … वो जो ओमकार को ईश्वरीय ध्वनि माने… कर्मो पर विश्वास करे, गौ पालक रहे… तथा…. बुराइयों को दूर रखे…. वो हिन्दू है )
@@ और तो और…. हमारे ऋग्वेद (८:२:४१) में ‘विवहिंदु’ नाम के
राजा का वर्णन है…. जिसने 46000 गाएँ दान में दी थी….. विवहिंदु बहुत पराक्रमी और दानीराजा था….. और, ऋग वेद मंडल 8 में भी उसका वर्णन है|
## सिर्फ इतना ही नहीं…. हमारे धार्मिक ग्रंथों के अलावा भी अनेक जगह पर हिन्दू शब्द उल्लेखित है….
** (656 -661 ) इस्लाम के चतुर्थ खलीफ़ा अली बिन अबी तालिब लिखते हैं कि… वह भूमि जहां पुस्तकें सर्वप्रथम लिखी गईं, और जहां से विवेक तथा ज्ञान की‌ नदियां प्रवाहित हुईं, वह भूमि हिन्दुस्तान है। ( स्रोत : ‘हिन्दू मुस्लिम कल्चरल अवार्ड ‘- सैयद मोहमुद. बाम्बे 1949.)
** नौवीं सदी के मुस्लिम इतिहासकार अल जहीज़ लिखते हैं….. “हिन्दू ज्योतिष शास्त्र में, गणित, औषधि विज्ञान, तथा विभिन्न विज्ञानों में श्रेष्ठ हैं।
मूर्ति कला, चित्रकला और वास्तुकला का उऩ्होंने पूर्णता तक विकास किया है। उनके पास कविताओं, दर्शन, साहित्य और नीति विज्ञान के संग्रह हैं।
भारत से हमने कलीलाह वा दिम्नाह नामक पुस्तक प्राप्त की है।
इन लोगों में निर्णायक शक्ति है, ये बहादुर हैं। उनमें शुचिता, एवं शुद्धता के सद्गुण हैं। मनन वहीं से शुरु हुआ है।
@@ इस तरह हम देखते हैं कि…. इस्लाम के जन्म से हजारों-लाखों साल पूर्व से हिन्दू शब्द प्रचलन में था…. और, हिन्दू तथा हिन्दुस्थान शब्द … पूरी दुनिया में आदर सूचक एवं सम्मानीय शब्द था…!
साथ ही इन प्रमाणों से बिल्कुल ही स्पष्ट है कि…. हिन्दू शब्द ना सिर्फ हमारे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित है … बल्कि… हिन्दू धर्म और संस्कृति हर क्षेत्र में उन्नत था…. साथ ही , हमारे पूर्वज काफी बहादुर थे और उनमे निर्णायक शक्ति थी… जिस कारण विधर्मियों की….. हिन्दू और हमारे हिंदुस्तान के नाम से ही फट जाती थी….. जिस कारण उन्होंने ये अरब वाली कहानी फैला रखी है…!
इसीलिए मित्रों….. सेकुलरों और धर्मभ्रष्ट अवं पथभ्रष्ट लोगों कि नौटंकियों पर ना जाएँ….. और ”गर्व  से कहो, हम हिन्दू हैं ” ।

सोमवार, 23 सितंबर 2013

क्या साँईं हिन्दू समाज में ईश्वर के स्थान पर पूजनीय है? 


(एक विश्लेषण ...)

पिछले कुछ वर्षो में शिरड़ी साँईं के चरित्र को भगवान के सद्रश पूजा जा रहा है और साँईं भक्ति में असामान्य वृद्धि हो रही है  । साँईं मंदिर में करोडो का चढ़ावा आता है. साँईं के अनेको भक्त उनको भगवान की तरह पूजते है. व्रत, पूजा किया करते है. और उनका मानना है कि साँईं उनकी मनोकामना पूर्ण करते है ।

अब प्रश्न यह उठता है कि यह साँईं है कौन ? उनकी ऐतिहासिक पुष्ठभूमि क्या है? और वह ईश्वर किस प्रकार घोषित किया गया ?

साँईं - (28 September 1835 – 15 October 1918)

साँईं के माता पिता और गुरु इत्यादि के बारे मे कोई प्रामाणिक सन्दर्भ नहीं मिलता । उनका जन्म २८ सितम्बर १८३५ को हुआ, और मृत्यु १५ अक्तूबर १९१८ में हुई. प्रमाणिक सन्दर्भ बताते है कि वह एक मुस्लिम फ़क़ीर था. किन्तु तत्कालीन हिन्दू बहुसंख्यक प्रदेश शिरड़ी - महाराष्ट्र में उसका डेरा होने के कारण हिन्दुओ में लोकप्रियता हेतु उसने हिंदू धर्म का मुखोटा स्वीकार किया और "ईश्वर-अल्लाह एक" का नारा दिया... साथ ही "श्रद्धा और सबुरी" , "सब का मालिक एक" , "अल्लाह-ईश्वर" जैसे अनेक नारे दिए । वह जहाँ रहता था उस जगह का उसने "द्वारकामाई" नाम दिया. जो आज भी शिरड़ी में है । उसने असामान्य जादुई करतब और चमत्कार द्वारा जन-सामान्य को अपनी और खीचा. तत्वज्ञान के नाम पर अथवा शास्त्र ज्ञान के नाम पर उसकी न कोई रचना और न कोई प्रवचन इत्यादि प्रचलित व प्राप्त है । हिन्दुओ की कट्टरता दूर कर सेक्युलर बनाने में साँईं का एक बहुत बड़ा हाथ रहा है । उसके सभी भक्त आज भी उसके चमत्कार और जादुई करतबों से ही प्रभावित हो कर उसकी तरफ खीचते जाते हैं. जो उन्होंने किसी और के द्वारा सुन रखे हैं ।

यह हुई उसके जीवन चरित्र से जुडी कुछ बाते. अब हम उसके पूज्य होने - न होने पर एवं उसकी लाभ-हानि पर विचार करते है ।

तर्क १ - क्या साईं को पूजना उचित है क्युकि स्वयं कृष्ण ने गीता में विभूति की बात कही है ।

साँईं के भक्तो व श्रद्धालुओ में कुछ तार्किक लोग भी है, जो गीता के अध्याय १० के ४१ वे श्लोक का उदाहरण देते है और कहते है कि स्वयं भगवन कृष्ण ने कहा है  "यद्यद्विभुती मत्सत्वं....तेजोऽशसंभवं" अर्थात "विश्व में जो कोई भी विभूति है उसको तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति जान". साँईं के भक्त इस श्लोक को आधार बना कर यह कहते है की साMईं भी इश्वर की ही विभूति है ।

निराकरण - ऐसा कहने वाले लोगो से पूछा जाए की विभूति होने - ना होने का मापदंड क्या है? क्या जादू-चमत्कार से प्रभावित कर लेना विभूति हो जाना होता है? ऐसे तो जादूगर भी हजारो-लाखो की भीड़ को प्रभावित करता है तो क्या वह ईश्वर हो गए? क्या साँईं ने कोई तत्वज्ञान अथवा शास्त्रादी का अध्ययन कर कोई सामजिक क्रांति, अथवा वैदिक धर्म रक्षण हेतु, वेद शास्त्र रक्षण हेतु कार्य किया कि उन्हें ईश्वर आदि की उपाधि दी जाए? क्या वह शिव, विष्णु इत्यादि ईश्वर की ऐतहासिक और शास्त्रीय मान्यता से प्रमाणित है? क्या हिन्दू शास्त्रों ने इसकी मान्यता दी है? तो किस आधार पर उसे ईश्वर की उपाधि दी जानी चाहिए?

तर्क २ - कुछ लोग कहते है कि साईं को ईश्वर मान लेने से हिन्दू मुस्लिम बनने से बच गए, क्युकि साँईं मुस्लिम होता तो सभी साँईं भक्त मुस्लिम हो जाते जैसे बुद्ध-महावीर का हुआ वैसे साँईं का न हो इसीलिए अन्य सम्प्रदाय बनने से हिन्दू समाज विभक्त न हो इस लिए साँईं को हिन्दू भगवान बना दिया गया ।

निराकरण - ऐसा नहीं है, आप कहते है कि साँईं को ईश्वर मान लेने से और हिन्दू धर्म से जोड़ लेने से एक अलग सम्प्रदाय बनने से और साँईं भक्तो के मुस्लिम बनने से रोका गया । लेकिन यह बात गलत है. क्युकि मुस्लिम के शिया-सुन्नी दोनों ही सम्प्रदाय अल्लाह के सिवा किसी और का अस्तित्व मान्य ही नहीं करते. उन्होंने साँईं को मान्य नहीं किया इसीलिए तो साँईं ने हिन्दू धर्म का आश्रय लिया । अधिक से अधिक साँईं की हेसियत इस्लाम में जीते हुए एक फ़क़ीर और मरने के बाद शायद पीर जितनी ही होती. और हम परिणाम के पूर्व कोई घोषणा नहीं कर सकते.साँईं जब तक जीवित थे तब तक उनके भक्तो की संख्या इतनी नहीं थी कि जिसके आधार पर हिन्दू समाज के एक बहुत बड़ा हिस्सा अन्य सम्प्रदाय की ओर बढता और अगर आप कहें कि बुद्ध-महावीर का जैसा हुआ वैसा साँईं का न हो इसीलिए उसको ईश्वर माना गया...तो महोदय, बुद्ध और महावीर तो स्वतन्त्र दर्शन के स्थापक थे । बुद्ध (विज्ञान और शून्य वाद) और महावीर (जैन) आदि समाज के संस्थापक है. और यह उनके चमत्कार-जादू इत्यादि के कारण नहीं अपितु उनके दर्शन एवं विचार के आधार पर हुआ. साँईं के पास इस प्रकार के दर्शन का अभाव है. अतः साँईं को न मानने से कोई हानि न होती ।

भोले भाले हिन्दू समाज के लोग मन्नत इत्यादि पूर्ति के लिए साँईं के दरबार में जाते है । क्युकि उनको अपने दुखो से निवारण चाहिए । लेकिन यह वह शुद्ध भक्ति नहीं है जो ईश्वर के प्रति होनी चाहिए और न साँईं को ईश्वर कहा जा सकता है ।
यही कारण है की निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे पाखंडियो को भी पूजा जाता है और उनके दरबार करोडो में बिकते है. एक बात याद रखनी चाहिए जितने खंड खंड में आप बटोंगे उतने ही आप कमजोर हो जाओगे ।



साँई को हिन्दु समाज में कब लाया गया ?

12 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार की हत्या हुई, गुलशन कुमार ने अपने जीवन में कभी साँईं का प्रचार नहीं किया । जीवन भर उन्होंने केवल शिव हनुमान और देवी की उपासना में बिता दिया । आखिरी समय भी वे शिव जी के दर्शन करके लौट रहे थे तब उनकी हत्या हुई थी, कही न कही तो कुछ गड़बड़ थी जो अब जांच करने भी पता नहीं लग सकती ।
जब तक गुलशन कुमार थे, शिर्डी के साँईं संस्थान की हिम्मत नही हुई थी साँईं का प्रचार करने की । यदि किया भी था तो इतना अधिक प्रभावित नहीं हुआ था की जनमानस में फ़ैल सके, क्यूंकि लोगो के दिलो में तो तब गुलशन कुमार के भजन और भेंटे इतनी अधिक लोकप्रिय थी कि साँईं जैसे टुच्चे नए भगवान उसमे समा ही नहीं पाते ।
गुलशन कुमार की हत्या के ठीक 6 महीने बाद 1998 में साँईं नाम के एक नए भगवान का अवतरण हुआ ।
इसके कुछ समय बाद May 28, 1999 में बीवी नंबर 1 फिल्म आई जिसमे साँईं के साथ पहली बार राम को जोड़कर ॐ साँईं राम गाना बनाया था, न किसी हिन्दू संगठन का इस पर ध्यान गया और न किसी ने इस पर आपत्ति की ।
पहला षड्यंत्र कामयाब,
इस नए भगवान की एक खासियत थी ..
इसे लोग धर्मनिरपेक्ष अवतार कहते थे, जिसने हिन्दू मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया था । वो अलग बात है कि उसी चिलम बाबा उर्फ़ साँईं बाबा के समय में कई दंगे हुए, बंगाल विभाजन हुआ, मोपला दंगे हुए, मालाबार में हजारो हिन्दुओ को काटा और साँईं को अल्लाह का भक्त बना दिया गया ।
अब इस नए भगवान की एक और खासियत थी, नाम हिन्दुओ का प्रयोग हो रहा था और जागरण में अल्लाह अल्लाह गाया जा रहा था ।
वैसे मुसलमान ये कहते है की केवल अल्लाह पूजनीय है उसके अतिरिक्त कोई नहीं ।
पर अल-तकिया नाम की चीज भी कुछ होती है, उसे कब अमल में लाते, इसलिए शुरू हुआ साँईं अल्लाह का प्रचार ।
लोगो को ये नया घटिया कान्सेप्ट बड़ा पसंद आया, वैसे भी देश में भेडचाल है, अंधे के पीछे आँख वाला पट्टी बंद कर चलता है ।

साँई के विषय में कुछ बातें शिर्डी साँई संस्थान द्वारा प्रमाणित साँई सत्चरित्र से
क्या इतनी हिन्दू विरोधी बातो से भी हिन्दुओ की आँखे नहीं खुलती ?

अध्याय 4, 5, 7 - साईं बाबा के होंठो पर सदैव "अल्लाह मालिक" रहता था ।

अध्याय 38 - मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वे "मौलवी से फातिहा" पढने के लिए कहते थे ।

अध्याय 18, 19 - इस मस्जिद में बैठ कर मैं सत्य ही बोलुगा की किन्ही साधनाओ या शास्त्रों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं है ।

अध्याय 10- न्याय या दर्शन शास्त्र या मीमांसा पढने की आवश्यकता नहीं है ।

अध्याय 23 - प्राणायाम, श्वासोंचछवासम हठयोग या अन्य कठिन साधनाओ की आवश्यकता नहीं है ।

अध्याय 28 - चावडी का जुलुस देखने के दिन साईं बाबा कफ से अधिक पीड़ित थे ।

अध्याय 43, 44 - 1886 मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन साईं बाबा को दमा से अधिक पीड़ा हुई ।

यही नहीं इसमें साईं के प्रसाद में मांस मिलाने और एक ब्राह्मण को मांस मिला भोजन खिलाने के लिए बाध्य करने के कुछ प्रमाण है ।

सनातनी परंपरा में केवल इश्वर, अवतार, या देवता की पूजा ही मान्य है उसके अलावा सभी एक तरह से पाखंड ही है ।
चूँकि साईं न इश्वर है न देवता और न अवतार इसलिए वह भी एक प्रकार से पूजनीय व्यक्तियों की श्रेणी में नहीं आता, एक साधारण इंसान होते हुए भी उसे इश्वर की तरह पूजा जाना सनातन धर्म का ही घोर अपमान है ।

यहाँ से साँई सत्चरित्र डाउनलोड करे ले और इसे एक बार ज़रुर पढे-


शनिवार, 21 सितंबर 2013

मैं हिन्दु हूँ बस हिन्दु ही


मैं ॐकार की प्रखर ध्वनि
मैं कानन का दावानल हूँ ।

मैं रणचण्डी, रणभेदी मैं
रण का मैं रणवीर बना ।

मैंने रक्त बीज का रक्त पीया
मैंने गीता संदेश दिया ।

मैं हिन्दु हूँ बस हिन्दु ही
मैं सृजनकारी मैं प्रलयंकर ।।

मैं ऋषि पुत्र, शास्त्रो का साथी
मैंने दानव संहार किया ।

मैं वेद दुत, योगी, विज्ञानी
जग अलख जगाता आया हूँ ।

मैं हिन्दु हूँ बस हिन्दु ही
मैं सृजनकारी मैं प्रलयंकर ।।

पढ़ लेना मेरा इतिहास अमर
क्षण भर भी हो संदेह अगर,

इन्द्रप्रस्थ से दिल्ली तक
शीश चढाते आया हूँ ।

मैं हिन्दु हूँ बस हिन्दु ही
मैं सृजनकारी मैं प्रलयंकर ।।


( अहिंसा परमो धर्मः धर्महिंसा तथैव च: ) 

सूर्य प्रताप सिंह शक्तावत