गुरुवार, 28 नवंबर 2013


"कोर्ट मार्शल"

आर्मी कोर्ट रूम में आज एक
केस अनोखा अड़ा था
छाती तान अफसरों के आगे
फौजी बलवान खड़ा था

बिन हुक्म बलवान तूने ये
कदम कैसे उठा लिया
किससे पूछ उस रात तू
दुश्मन की सीमा में जा लिया

बलवान बोला सर जी! ये बताओ
कि वो किस से पूछ के आये थे
सोये फौजियों के सिर काटने का
फरमान कोन से बाप से लाये थे

बलवान का जवाब में सवाल दागना 
अफसरों को पसंद नही आया
और बीच वाले अफसर ने लिखने
के लिए जल्दी से पेन उठाया

एक बोला बलवान हमें ऊपर
जवाब देना है और तेरे काटे हुए
सिर का पूरा हिसाब देना है

तेरी इस करतूत ने हमारी नाक कटवा दी
अंतरास्ट्रीय बिरादरी में तूने थू थू करवा दी

बलवान खून का कड़वा घूंट पी के रह गया
आँख में आया आंसू भीतर को ही बह गया

बोला साहब जी! अगर कोई
आपकी माँ की इज्जत लूटता हो
आपकी बहन बेटी या पत्नी को
सरेआम मारता कूटता हो

तो आप पहले अपने बाप का
हुकमनामा लाओगे ?
या फिर अपने घर की लुटती
इज्जत खुद बचाओगे?

अफसर नीचे झाँकने लगा
एक ही जगह पर ताकने लगा

बलवान बोला साहब जी गाँव का
ग्वार हूँ बस इतना जानता हूँ
कौन कहाँ है देश का दुश्मन सरहद
पे खड़ा खड़ा पहचानता हूँ

सीधा सा आदमी हूँ साहब !
मै कोई आंधी नहीं हूँ
थप्पड़ खा गाल आगे कर दूँ
मै वो गांधी नहीं हूँ

अगर सरहद पे खड़े होकर गोली
न चलाने की मुनादी है
तो फिर साहब जी ! माफ़ करना
ये काहे की आजादी है

सुनों साहब जी ! सरहद पे
जब जब भी छिड़ी लडाई है
भारत माँ दुश्मन से नही आप
जैसों से हारती आई है

वोटों की राजनीति साहब जी
लोकतंत्र का मैल है
और भारतीय सेना इस राजनीति
की रखैल है

ये क्या हुकम देंगे हमें जो
खुद ही भिखारी हैं
किन्नर है सारे के सारे न कोई
नर है न नारी है

ज्यादा कुछ कहूँ तो साहब जी
दोनों हाथ जोड़ के माफ़ी है
दुश्मन का पेशाब निकालने को
तो हमारी आँख ही काफी है

और साहब जी एक बात बताओ
वर्तमान से थोडा सा पीछे जाओ

कारगिल में जब मैंने अपना पंजाब
वाला यार जसवंत खोया था
आप गवाह हो साहब जी उस वक्त
मै बिल्कुल भी नहीं रोया था

खुद उसके शरीर को उसके गाँव
जाकर मै उतार कर आया था
उसके दोनों बच्चों के सिर साहब जी
मै पुचकार कर आया था

पर उस दिन रोया मै जब उसकी
घरवाली होंसला छोड़ती दिखी
और लघु सचिवालय में वो चपरासी
के हाथ पांव जोड़ती दिखी

आग लग गयी साहब जी दिल
किया कि सबके छक्के छुड़ा दूँ
चपरासी और उस चरित्रहीन
अफसर को मै गोली से उड़ा दूँ

एक लाख की आस में भाभी
आज भी धक्के खाती है
दो मासूमो की चमड़ी धूप में
यूँही झुलसी जाती है

और साहब जी ! शहीद जोगिन्दर
को तो नहीं भूले होंगे आप
घर में जवान बहन थी जिसकी
और अँधा था जिसका बाप

अब बाप हर रोज लड़की को
कमरे में बंद करके आता है
और स्टेशन पर एक रूपये के
लिए जोर से चिल्लाता है

पता नही कितने जोगिन्दर जसवंत
यूँ अपनी जान गवांते हैं
और उनके परिजन मासूम बच्चे
यूँ दर दर की ठोकरें खाते हैं..

भरे गले से तीसरा अफसर बोला
बात को और ज्यादा न बढाओ
उस रात क्या- क्या हुआ था बस
यही अपनी सफाई में बताओ

भरी आँखों से हँसते हुए बलवान
बोलने लगा
उसका हर बोल सबके कलेजों
को छोलने लगा

साहब जी ! उस हमले की रात
हमने सन्देश भेजे लगातार सात

हर बार की तरह कोई जवाब नही आया
दो जवान मारे गए पर कोई हिसाब नही आया

चौंकी पे जमे जवान लगातार
गोलीबारी में मारे जा रहे थे
और हम दुश्मन से नहीं अपने
हेडक्वार्टर से हारे जा रहे थे

फिर दुश्मन के हाथ में कटार देख
मेरा सिर चकरा गया
गुरमेल का कटा हुआ सिर जब
दुश्मन के हाथ में आ गया

फेंक दिया ट्रांसमीटर मैंने और
कुछ भी सूझ नहीं आई थी
बिन आदेश के पहली मर्तबा सर !
मैंने बन्दूक उठाई थी

गुरमेल का सिर लिए दुश्मन
रेखा पार कर गया
पीछे पीछे मै भी अपने पांव
उसकी धरती पे धर गया

पर वापिस हार का मुँह देख के
न आया हूँ
वो एक काट कर ले गए थे
मै दो काटकर लाया हूँ

इस ब्यान का कोर्ट में न जाने
कैसा असर गया
पूरे ही कमरे में एक सन्नाटा
सा पसर गया

पूरे का पूरा माहौल बस एक ही
सवाल में खो रहा था
कि कोर्ट मार्शल फौजी का था
या पूरे देश का हो रहा...

शनिवार, 23 नवंबर 2013

हिन्दु शब्द की उत्पत्ति

अक्सर लोग ये कहते दिखाई देते हैं कि हिन्दु नाम तो मुस्लिम शासको का दिया है या हम तो आर्य है हिन्दु शब्द से भी हमारा उतना ही बैर है जितना इस्लाम से ।

पर ये बात बहुत दुःखद है, हम अज्ञानता वश अपनी ही हानि कर रहे हैं । ना हमने वेदो को खोजा और ना ही अपने इतिहास को, फिर स्वयं ही परिहास का पात्र बनना कहाँ तक उचित है ?

ये नाम हमें ना अरबियों का दिया है ना पश्चिम से आए लोगो ने ।
ये हमें हमारे अपने ग्रंथो ने, ऋषियों ने और हमारे ईश्वर ने दिया है..





ऋग्वेद के ही ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द इस प्रकार आया है -

हिमालयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।

( अर्थात….हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिन्दुस्थान कहते हैं )


सिर्फ वेद ही नहीं, बल्कि मेरुतंत्र ( शैव ग्रन्थ ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है -

‘हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये’

( अर्थात… जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं )


इतना ही नहीं लगभग यही मंत्र यही शब्द कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है -

'हीनं दूषयति इति हिन्दू'

( अर्थात… जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं )

पारिजात हरण में “हिन्दू” को कुछ इस प्रकार कहा गया है -

हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टम ।
हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिंदुरभिधियते ।।

माधव दिग्विजय में हिन्दू शब्द इस प्रकार उल्लेखित है -

ओंकारमंत्रमूलाढ्य पुनर्जन्म दृढाशयः ।
गोभक्तो भारतगुरू र्हिन्दुर्हिंसनदूषकः ॥

( अर्थात … वो जो ओमकार को ईश्वरीय ध्वनि माने कर्मो पर विश्वास करे, गौ पालक रहे तथा बुराइयों को दूर रखे वो हिन्दू है )


हमारे ऋग्वेद (८:२:४१) में ‘विवहिंदु’ नाम केराजा का वर्णन है, जिसने 46000 गाएँ दान में दी थी विवहिंदु बहुत पराक्रमी और दानीराजा था और, ऋग वेद मंडल 8 में भी उसका वर्णन है ।

इसके अतिरिक्त

१० वीं शताब्दी के महाकवि वेन - अटल नगर अजमेर,अटल हिंदव अस्थानं । 
महाकवि चन्द्र बरदाई - जब हिंदू दल जोर छुए छूती मेरे धार भ्रम




सिर्फ इतना ही नहीं, हमारे धार्मिक ग्रंथों के अलावा भी अनेक जगह पर हिन्दू शब्द उल्लेखित है-

पारसी समाज के एक अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थ में लिखा है कि -

"अक्नुम बिरह्मने व्यास नाम आज हिंद आमद बस दाना कि काल चुना नस्त"। 

अर्थात व्यास नमक एक ब्र्हामन हिंद से आया जिसके बराबर कोई अक्लमंद नही था। 

(656 -661 ) इस्लाम के चतुर्थ खलीफ़ा अली बिन अबी तालिब लिखते हैं कि वह भूमि जहां पुस्तकें सर्वप्रथम लिखी गईं, और जहां से विवेक तथा ज्ञान की‌ नदियां प्रवाहित हुईं, वह भूमि हिन्दुस्तान है। ( स्रोत : ‘हिन्दू मुस्लिम कल्चरल अवार्ड ‘- सैयद मोहमुद. बाम्बे 1949.)


नौवीं सदी के मुस्लिम इतिहासकार अल जहीज़ लिखते हैं “हिन्दू ज्योतिष शास्त्र में, गणित, औषधि विज्ञान, तथा विभिन्न विज्ञानों में श्रेष्ठ हैं। मूर्ति कला, चित्रकला और वास्तुकला का उऩ्होंने पूर्णता तक विकास किया है। उनके पास कविताओं, दर्शन, साहित्य और नीति विज्ञान के संग्रह हैं।

भारत से हमने कलीलाह वा दिम्नाह नामक पुस्तक प्राप्त की है। इन लोगों में निर्णायक शक्ति है, ये बहादुर हैं। उनमें शुचिता, एवं शुद्धता के सद्गुण हैं। मनन वहीं से शुरु हुआ है।


इस्लाम के पैगेम्बर मोहम्मद से भी १७०० वर्ष पुर्व लबि बिन अख्ताब बिना तुर्फा नाम के एक कवि अरब में पैदा हुए। उन्होंने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है - 

"अया मुबार्केल अरज यू शैये नोहा मिलन हिन्दे। 
व अरादाक्ल्लाह मन्योंज्जेल जिकर्तुं॥ 

(अर्थात हे हिंद कि पुन्य भूमि! तू धन्य है,क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझे चुना है।) 

इस तरह हम देखते हैं कि इस्लाम के जन्म से हजारों-लाखों साल पूर्व से हिन्दू शब्द प्रचलन में था और हिन्दू तथा हिन्दुस्थान शब्द पूरी दुनिया में आदर सूचक एवं सम्मानीय शब्द था  ।

साथ ही इन प्रमाणों से और ऐसे ही हज़ारो-हज़ार प्रमाणो बिल्कुल ही स्पष्ट है कि हिन्दू शब्द ना सिर्फ हमारे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित है बल्कि हिन्दू धर्म और संस्कृति के हर क्षेत्र में व्याप्त था । साथ ही हमारे पूर्वज काफी बहादुर थे और उनमे निर्णायक शक्ति अद्वितीय थी जिस कारण विधर्मियों के मन में हिन्दू और हमारे हिंदुस्तान के नाम से ही भय उत्पन्न हो जाता था जिस कारण उन्होंने इस तरह की अफवाहें उड़ाई ।


गुरुवार, 14 नवंबर 2013

क्या आपको अपने बच्चो के लिए ऐसा चाचा चाहिए ?

भारत के सबसे निर्लज व्यक्ति का अगर नाम लिया जाए तो जवाहर लाल नेहरू का नाम सबसे पहले आएगा। लड़कियों के साथ रंगलियाँ मनाना,ठर्रे लगाना इनका शौक था।  विदेश में पढ़कर आए नेहरू पुरी तरह उसी में लिपटे थे उसका सपना भी एक ऐसे ही भारत (INDIA) के निर्माण का था ।

इन जनाब की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि ये कभी अपने दिमाग का उपयोग नहीं करते थे। महात्मा गाँधी की अति कृपा दृष्टि से आपको भारत के प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ कश्मीर समस्या भी आप की ही देन है ।

गाँधी कृपा से हर्षित नेहरू ने एक बार गाँधी सम्मान में कहा -" ओह दैट आफुल ओल्ड हिपोक्रेट " Oh, that awful old hypocrite - ओह ! वह ( गांधी ) भयंकर ढोंगी बुड्ढा. यही नेहरू का गाँधी सम्मान का सबसे बड़ा उदाहरण है।


देखिए चाचा के जीवन के कुछ मनमोहक पल
     




जवाहरलाल जिसे हम सभी चाचा नेहरु के नाम से जानते हैं, उनके प्रेम के रहस्यमय सम्बन्ध अनेक कन्याओं से थे, जिनमें एक बनारस की लड़की भी थी । जवाहर लाल नेहरु, धुम्रपान, मदिरा पान के अलावा, कई किशोरवय की लड़कियों से भी सम्बन्ध रखते थे। उनका सबसे ‘चर्चित गुप्त प्रेम सम्बन्ध’ रहा लार्ड माउंट बैटन की पत्नी एडविना बैटन के साथ। हिन्दुस्तान की आज़ादी और उनके प्रधानमन्त्री बनने के बाद भी यह प्रेम प्रसंग जारी रहा। एडविना को नेहरु १९४८-१९६० तक लगातार पत्र लिखते रहे थे। उन प्रेम पत्रों में गुलाब की पंखुड़ियां भी हुआ करतीं थीं। अगर उन पत्रो को इकट्ठा करके तौला जाए तो उनका वजन ५-६ पाउंड वजन हो ही जाएगा मतलब लगभग २ किलो। तो ये हाल नए-नए राष्ट्र के नए-नए प्रधानमन्त्री का था। ऐसी लगन वाले प्रेमी थे हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जी :)

इसके अलावा नेहरू का प्रेम सम्बन्ध सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू के साथ भी था,  जिन्हें नेहरु ने बंगाल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया था । कहते हैं नेहरु अपने बेडरूम में पद्मजा नायडू की तस्वीर भी रखा करते थे, जो इंदिरा को पसंद नहीं था और वो अक्सर वो तस्वीर उनके कमरे से बाहर फैंक देती थी और तब यह तस्वीर दोनों बाप-बेटी के बीच तनाव का कारण बन जाती थी।

कहते हैं, इसके अलावा बंगलौर के एक कान्वेंट में श्रद्धा माता नामक एक सन्यासिन से भी उनके सम्बन्ध थे, यहाँ तक कहा जाता है कि, एक बेटा पैदा हुआ था और वह एक ईसाई मिशनरी बोर्डिंग स्कूल में रखा गया था, बच्चे की जन्म की तारीख से ३० मई, १९४९ बतायी जाती है…

भारत की स्वाधीनता में नेहरु का कितना हाथ था ? ये कहना ज़रा मुश्किल है, क्योंकि उनका ज्यादातर वक्त तो बीतता था एडविना के साथ हनीमून मानाने में, कभी शिमला तो कभी और कहीं।

इसमें गलती नेहरू की नहीं है दरसल उनका जन्म ही इतनी गंदी जगह हुआ था कि स्वभाव गंदा तो होना ही था ।

नेहरू का जन्म स्थल है ७७ मीरगंज, इलाहबाद। यह पुरे इलाके का नामी गिरामी वेश्यालय है। ऐसा नहीं कि ये जगह हाल-फिलहाल वेश्यालय बना है, यह स्थान वेश्यालय नेहरु के जन्म से पहले से ही है। जवाहर के पिता मोतीलाल ने अपने ही घर का आधा हिस्सा ‘लाली जान’ नामक वेश्या को बेच दिया था। तब से यहाँ वेश्यालय है। ये जगह अभी इमामबाड़ा के नाम से जानी जाती है किसी को भी शक हो तो जाकर देख सकता है ।
और यहाँ से जाने के बाद नेहरू एंड़ फैमेली "आनंद भवन" बस गए ।

ऐसे थे पहले प्रधानमंत्री जी और हमारे देश के बच्चो के प्यारे चाचा ।

सूर्य प्रताप सिंह शक्तावत


बुधवार, 13 नवंबर 2013

आसाराम बापु एक संत या स्वयंभू संत

प्रश्न उठता है कि क्या ४० साल से धर्म और आधात्म का प्रचार कर रहा व्यक्ति स्वयंभू संत हो सकता है ? क्या वो सब गुनाह कर सकता है जिसके आरोप उन पर लग रहे हैं ?

सबसे पहले हम आसाराम बापु के जीवन को जानते है

आसाराम बापु का जन्म नवाब जिले के बेराणी गाँव में हुआ था जो वर्तमान पाकिस्तान में है। देश विभाजन के बाद बापु भारत आ गए। माता महंगीबा की धर्म और आध्यात्म की शिक्षा आसाराम बापु को ईश्वर प्राप्ती के लिए तरसाने लगी, ईश्वर प्राप्ती के लिए वो कई जगह भटके अंततः लीलाशाह जी के सानिध्य में उन्हे आत्मसाक्षात्कार हुआ।

तब से लेकर आज तक वो हिन्दु धर्म का प्रचार और संरक्षण कर रहे हैं, अगर ऐसा ना होता तो आज उनके फोलोअर करोड़ो की संख्या में ना होते। आज बापु के कारण ही करोड़ो लोग देश विदेश में ‘वेलेंटाइन डे’ की जगह 14 फरवरी को ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ मना रहे हैं ।



आसाराम बापु की संपत्ति - आसाराम बापु की अपनी कोई निजी संपत्ति नहीं है.  लगभग 425 आश्रम है जो संबंधित समितियों द्वारा संचालित होते हैं,  1400 से अधिक समितियाँ है जो आश्रम, आयुर्वेद, गुरूकुल और प्रकाशन का कार्य देखती हैं, 17000+ बाल संस्कार केन्द्र बापु के फोलोअर अपने घरो में चलाते हैं जिसमें बच्चो को धर्म और कर्म शिक्षा दी जाती है, हज़ारो गौ शालाएँ हैं।

आरोप - उत्तर प्रदेश की लड़की, जो मध्य प्रदेश में पढ़ रही थी, जोधपुर (राजस्थान) में उसके साथ छेड़खानी हुई ऐसी एफआईआर दर्ज कराती है, कहाँ जाकर? दिल्ली के भीतर कमला मार्केट थाने में पहुँचकर! वह भी 5 दिन बाद रात 2-45 बजे!
लड़की की एफआईआर में स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से कहीं भी किसी भी तरह से दुष्कर्म (रेप) का उल्लेख नहीं है। लेकिन प्रसार-माध्यमों का सहारा लेकर ‘रेप हुआ है’ व ‘मेडिकल टेस्ट में रेप की पुष्टि हुई है’ ऐसी झूठी खबरें फैलायी गयीं।
लड़की की मेडिकल जाँच रिपोर्ट में रेप की बात को पूरी तरह खारिज कर दिया गया है एवं इसके बावजूद रेप की गैर-जमानती धारा 376 लगायी गयी, जो पूज्य बापूजी को बदनाम करने की सोची-समझी साजिश है। इस बात के लिए राजस्थान पुलिस ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगायी तथा जोधपुर पुलिस डीसीपी अजय पाल लाम्बा ने स्पष्ट रूप से स्वीकार भी किया कि दिल्ली पुलिस ने केस गलत तरीके से दर्ज किया है।

ये केस कमजोर पड़ता देख और दो महिलाओं को लाया गया जिन्होने मामला २००२-२००४ का बताया है,ऐसा है तो फिर एफआईआर १०-११ साल बाद क्यों दर्ज की गयी ? और वह भी ६ अक्टूबर को, जिस दिन ‘बापूजी का आत्मसाक्षात्कार दिवस’ उनके देश-विदेश के करोड़ों भक्तों द्वारा विशेष पर्व के रूप में मनाया जाता है, इसी दिन क्यों ?
फिर तो वो लोग भी उठ कर आने लगे जिन्हे किसी ना किसी वजह से आश्रम से निकाला गया और जेल भी जाकर आएं हों ।

पीडोफिलिया  बिमारी -
पीडोफिलिया’ की बात केवल वकील के दिमाग व समझ की महज एक उपज थी, उसमें कोई भी तथ्य नहीं था । उनकी बात की पुष्टि के लिए उनके पास कोई ठोस सबूत (मेडिकल रिपोर्ट) नहीं था ।
दूसरा,  न्यायालय के द्वारा नियुक्त बोर्ड के द्वारा बापूजी की मेडिकल जाँच की गयी तब उसी बोर्ड के द्वारा दी गयी रिपोर्ट के अनुसार पूज्य बापू मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ हैं ।
वास्तविकता यह होते हुए भी कुछ मीडिया ने खबर फैलायी कि ‘सरकारी वकील ने कोर्ट में बापू की मेडिकल रिपोर्ट पेश की, जिसके मुताबिक वे पीडोफिलिया नाम की बीमारी से ग्रस्त हैं।’


आसाराम बापु ही क्यों ?

सिर्फ आसाराम बापु ही नहीं शकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, नित्यानंद स्वामी, बाबा रामदेव, रामरहीम सिंह जी, साध्वी प्रज्ञा,कृपालुजी महाराज और ऐसे ही कई संतो पर आरोप लगे उनका मिड़िया द्वारा बहुत कुप्रचार किया गया सभी निर्दोष साबित हुए परन्तु किसी ने भी ये न्यूज़ नहीं दिखाई ।

आसाराम बापु को निशाने पर लेने की निम्न प्रमुख वजह हैं -
1.आसाराम बापु इसाई धर्म प्रचारको के लिए एक चुनौती बन चुके हैं। आसाराम बापु ने अपने प्रभाव से इसाई प्रचारको को भी हिन्दु धर्म प्रचारक बना दिया। मिशनरियों के निशाने पर हमेशा पिछड़े इलाके होते हैं, जहाँ के मासूम आदिवासी, बन्जारा जाति- जनजाती को वो बहला फुसला कर और अनेक प्रलोभनो द्वारा इसाई बना देते हैं परन्तु आसाराम बापु ने सत्संग और दान द्वारा उनका अपनत्व हासिल कर लिया और उनका धर्मांतरण तो रोका ही साथ ही साथ धर्मांतरण कर चुके हिंदुओ को भी  फिर से धर्म में वापिस ले आए।

 एक ईसाई मिशनरी का धर्म प्रचारक जिसने हिन्दु धर्म स्वीकार किया-

2.शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती की गिरफ्तारी के विरोध में पुरे संत समाज के साथ आसाराम बापु भ्रष्ट सत्ताधारियों के विरूद्ध खड़े हो गये। भाजपा भी समर्थन में उतरी। बापु जंतर - मंतर पर जा बैठे तब कांग्रेस के लिए वो परेशानी बन गए। तब उन पर कार्यवाही करना संभव ना था, फिर षड़यंत्र रचा गया 


3.आसाराम बापु को  "धर्म रक्षा मंच" का अध्यक्ष चुना गया। धर्म रक्षा मंच अर्थात भारत के संतो का ऐसा संगठन जिसने एकजुट होकर हिन्दु धर्म की रक्षा का संकल्प लिया।
बापु को फसाने की यह भी वजह रहा कि अगर प्रतिनिधी को ही खत्म कर दिया जाए तो संगठन तो स्वतः ही समाप्त हो जाएगा ।

                                 


4. आसाराम बापु हमेशा ही अपने सत्संग में पाश्यात संस्कृति से दुर रहने की शिक्षा देते हैं। स्वदेशी का संकल्प साधको को दिलवाते हैं। शराब, सिगरेट और अन्य गंदगी से करोड़ो फोलोअर को दुर रखते हैं। बापु न्व वैलेंटाइन डे को माता - पिता की पुजन का दिन बना दिया ।
किस प्रकार होता है विदेशी कंपनियों का नुकसान - सूरेश चव्हाणके (सूदर्शन न्यूज़ प्रधान संपादक)

                            

लोगो ने संतो के लिए एक मापदण्ड बना लिया है जिसके तहत न संत विवाहित होना चाहिए, ना वाहनो का प्रयोग करता है, अपनी इच्छा के अनुसार ना खुश हो ना दुःखी ।

पर शायद वो लोग शायद तुलसीदास, वाल्मिकी को भूल गए जो विवाहित थे। 
वो शायद ये भूल गए कि पृथ्वी कोई छोटी से जगह नहीं जहाँ पैदल चलकर हर दुरी तय की जा सके । आसाराम बापु के सत्संग भारत के अलग अलग कोनो में होते हैं जहाँ पहुँचने के लिए वाहनो के उपयोग के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है ।
और लोग नरहरिदास और नामदेव को भी भूल गए जो नाचते - कुदते हरि नाम गाया करते थे।
कुछ लोगो का कहना है कि आसाराम बापु चमत्कारी संत है तो बाहर क्यो नहीं आ जाते जवाब के लिए ये २००४ का विड़ियो देखे -

                            

कुछ चैनल तथा ब्लॉगरो ने आसाराम बापु को बदनाम करने के लिए एक गंदी तस्वीर (स्वामी विराटो) का उपयोग किया, उसे में यहाँ ड़ालना उचित नहीं समझता अतः इस लिंक पर जाकर पुरा सच जानें -  http://oshoworld.ru/forum/viewtopic.php?t=4172

मिड़िया की भूमिका पर उठे सवाल

मिड़िया के द्वारा देश के महत्वपुर्ण मुद्दो को छोड़कर केवल आसाराम बापु को बताना उसे कठघरे में खड़ा करता है जिसने देश के हर व्यक्ति के मन में एक सवाल खड़ा किया है ।
मीड़िया के इस अतिरेक पर कई मीड़िया चैनल पर बहस हुई -

                               


आसाराम बापु पर अवैध आश्रम होने का आरोप लगाने वाले सरकारी मकानो की धांधली में बुरी तरह फसे हुए हैं। दिल्ली में सरकारी आवासो पर कब्जे को लेकर सूप्रिम कोर्ट इन्हे फटकार लगा चुका है। मध्य प्रदेश में २१० पत्रकारो का सरकारी बंगलो पर अवैध कब्जा है, लखनऊ में ५३ पत्रकारो को राज्य संपत्ति विभान ने सरकारी मकान खाली करने का नोटिस जारी किया है, देश के हर बड़े शहर में इनका यही हाल है ।

भारतीय मिड़िया को सिर्फ परेशानी हिन्दु धर्म से है क्योकि मौलवी और पादरी इन्हे नज़र नहीं आते। इन्हे गोवा में मूर्तियो पर मूतते इसाई नज़र नहीं आते, इन्हे हिन्दुओ को खत्म कर देने की धमकी देने वाला अकबर ओवेसी नज़र नहीं आता। इन्हे नज़र आता है प्रवीण तोगड़िया, इन्हे नज़र आता है आर.एस.एस.।

मिड़िया आज खबरे नहीं दिखाता वो दिखाता है रियालिटी शो, अब तक आसाराम बापु को लेकर ३०० घण्टे से अधिक की कवरेज दिखाया जा चुका है। टी.आर.पी. के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं आसाराम बापु के आश्रम में कंकाल होने का दावा करने वाले विनोद गुप्ता उर्फ भोलानंद ने भी ऐसा ही खुलासा किया है उसका कहना है एक राष्ट्रिय न्यूज़ चैनल के संपादक तथा रिपोर्टर ने उसे उकसाकर टीवी कार्यक्रम के दौरान बच्चे दफन होने का बयान देने के लिए कहा था। लिकं 


मिड़िया किस प्रकार ड़ालती है आपके मन- मस्तिष्क पर प्रभाव
   
           

भारत में ३९८ न्यूज़ चैनल है जिनमें खुद को आगे रखने की हौड़ लगी रहती है। मिड़िया चैनल को मिलने वाला ७०% पैसा विदेशी संस्थाओं से आता है इसलिए इनसे भारत हितैषी कार्यो की आशा नहीं की जा सकती।
सनी लियोन, शर्लिन चोपड़ा, पूनम पाण्ड़े जैसी व्यभिचारिणी स्त्रियों की नग्नता दिखाकर पैसा कमाने वाली मिड़िया संतो को बदनाम करने के लिए बिक जाए संभव है ।

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

प्राचिनतम सफल ब्रेन सर्जरी
भारत में प्राचीन हड़प्पा सभ्यता की खुदाई से एक लगभग 4300 ई० पू० वर्ष पुरानी मानव खोपड़ी प्राप्त हुई है जो दुनिया की सबसे पुरानी (ज्ञात) सफल मानव मस्तिष्क सर्जरी को दर्शाती है .

यह खोज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने की है । इस खोपड़ी का अध्याय करने से ज्ञात हुआ की यह अब तक की ज्ञात सर्वाधिक प्राचीन नर खोपड़ी है जिसका ऑपरेशन खोपड़ी में ड्रिल मशीन द्वारा छेद कर किया गया और ये ऑपरेशन पूर्णतया सफल भी रहा ।

इस प्रकार की सर्जरी को Trephination कहा जाता है । जब किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में भयंकर चोट लगती है जो मस्तिष्क/खोपड़ी के अंदरूनी भागो में हड्डी चटक जाया करती है इन्ही मस्तिष्क में बिखरी हड्डियों के चूरे आदि को मस्तिष्क से बहार निकलने की प्रक्रिया को Trephination कहा जाता है जिसमे खोपड़ी के एक छोटे से हिस्से में छेद कर ये ऑपरेशन किया जाता है । 




इसके अतिरिक्त कुछ दशकों पूर्व भी दुनिया के तथा भारत के कई स्थानों पर इस प्रकार के अवशेष प्राप्त हुए जिससे ये स्पष्ट होता है की प्राचीन भारत में निश्चय ही सफल ऑपरेशन किये जाते थे ।

किन्तु उन सभी में से ये खोज सबसे अधिक ठोस व् पुख्ता प्रमाण देती है ।
वैज्ञानिकों के अनुसार इसका अध्ययन करने पता चलता है की ये व्यक्ति किसी जबरदस्त आघात का शिकार बना था, छेद की आंतरिक सीमा की 3 मिमी चौड़ाई सावधानीपूर्वक किये गये ऑपरेशन को दर्शाती है, ऑपरेशन के पश्चात यह व्यक्ति स्वस्थ होकर काफी समय तक जीवित भी रहा ।

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

पृथ्वी का भोगोलिक मानचित्र: वेद व्यास द्वारा


महाभारत में पृथ्वी का पूरा मानचित्र हजारों वर्ष पूर्व ही दे दिया गया था। महाभारत में कहा गया है कि यह पृथ्वी चन्द्रमंडल में देखने पर दो अंशों मे खरगोश तथा अन्य दो अंशों में पिप्पल (पत्तों) के रुप में दिखायी देती है-


                                                 एक खरगोश और दो पत्तो का चित्र


 चित्र को उल्टा करने पर बना पृथ्वी का मानचित्र

उपरोक्त मानचित्र ग्लोब में


उपरोक्त मानचित्र ११वीं शताब्दी में रामानुजचार्य द्वारा महाभारत के निम्नलिखित श्लोक को पढ्ने के बाद बनाया गया था-

सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।

अर्थात
हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश(खरगोश) दिखायी देता है। अब यदि उपरोक्त संरचना को कागज पर बनाकर व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन जाता है, जो हमारी पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र से बहुत समानता दिखाता है।

गाँधी वध क्यों ?


30 जनवरी सन् 1948 ई. की शाम को जब गाँधी जी एक प्रार्थना सभा में भाग लेने जा रहे थे, तब राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर मोहनदास गाँधी का वध कर दिया था । नाथूराम गोडसे ने मोहनदास गाँधी के वध करने के 150 कारण न्यायालय के सामने बताये थे। नाथूराम गोडसे ने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वे अपने बयानों को पढ़कर सुनाना चाहते है और उन्होंने वो 150 बयान माइक पर पढ़कर सुनाए थे। उनमे से कुछ प्रमुख कारण ये थे -



1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया। इसके बाद जब उधम सिंह ने जर्नल डायर की हत्या इंग्लैण्ड में की तो, गाँधी ने उधम सिंह को एक पागल उन्मादी व्यक्ति कहा, और उन्होंने अंग्रेजों से आग्रह किया की इस हत्या के बाद उनके राजनातिक संबंधों में कोई समस्या नहीं आनी चाहिए |

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी जी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी जी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5. 1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6. गान्धी जी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7. गान्धी जी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी जी ही थे, जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी जी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी जी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी जी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी जी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी जी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी जी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण को देखते हुए, यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी जी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया।

18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया, जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है.

19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़? विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी...मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५ टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. उस समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा. फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया. और वो हिंदू - गाँधी मरता है तो मरने दो - के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे. रिपोर्ट --- जस्टिस कपूर. सुप्रीम कोर्ट. फॉर गाँधी वध क्यो ?

२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।

उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता।

उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे ने गान्धी का वध कर दिया। न्यायलय में गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा- "नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन मौजूद आम लोगों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।"