मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

किस प्रकार हिन्दू नववर्ष ईसाई नववर्ष से श्रेष्ठ है ?


एक जनवरी से प्रारंभ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका सम्बन्ध ईसाई जगत व ईसा मसीह से है । इसे रोम के सम्राट जुलियस सीज़र द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया । भारत में ईस्वी संवत् का प्रचलन अंग्रेजी शासको ने 1752 में किया  । 1752 से पहले ईस्वी सन् 25 मार्च से शुरू होता था किन्तु 18 वीं शताब्दी से इसकी शुरूआत एक जनवरी से होने लगी । जनवरी से जून रोमन के नामकरण रोमन जोनस,मार्स व मया इत्यादि के नाम पर हैं । जुलाई और अगस्त रोम के सम्राट जूलियस सीजर तथा उसके पौत्र आगस्टन के नाम पर तथा सितम्बर से दिसम्बर तक रोमन संवत् के मासो के आधार पर रखे गये हैं ।
आखिर क्या आधार है इस काल गणना का ? यह तो ग्रहो और नक्षत्रो की स्थिती पर आधारित होनी चाहिए ।

स्वतंत्रता प्राप्ती के पश्चात नवम्बर 1952 में वैज्ञानिको और औद्योगिक परिषद के द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गयी । समिति के 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रम संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की । किन्तु, तत्कालिन प्रधानमंत्री पं. नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन केलेण्ड़र को ही राष्ट्रीय केलेण्ड़र के रूप में स्वीकार लिया गया ।



ग्रेगेरियन केलेण्ड़र की काल गणना मात्र दो हजार वर्षो की अतो अल्प समय को दर्शाती है । जबकि यूनान की काल गणना 1582 वर्ष, रोम की 2757 वर्ष, यहूदी 5768, मिस्त्र की 28691, पारसी 198875 तथा चीन की 96002305 वर्ष पुरानी है । इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष है । जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं । हमारे प्राचीन ग्रंथो में एक एक पल की गणना की गई है ।

जिस प्रकार ईस्वी संवत् का सम्बन्ध ईसा से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मोहम्मद से है । किन्तु विक्रम संवत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न होकर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रम्हाण्ड़ के ग्रहो व नक्षत्रो से है । इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है । इतना ही नहीं, ब्रम्हाण्ड़ के सबसे पुरातन ग्रंथो वेदो में भी इसका वर्णन है । नव संवत् यानि संवत्सरो का वर्णन यजूर्वेद के 27 वें व 30 वें अध्याय ले मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है । विश्व को सौर मण्ड़ल के ग्रहों व नक्षत्रो की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिती पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग पर आधारित है ।

इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्यात्य देशो के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारंभ करने की बात हो हम एक कुशल पंड़ित के पास जाकर शुभ मुहूर्त पुछते हैं । और तो और, देश के बड़े से बड़े राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतज़ार करते हैं जो कि विशुद्ध रूप से विक्रमी संवत् के पंचाग पर आधारित होता है । भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम शुभ मुहूर्त में किया जाए तो उसकी सफलता में चार चाँद लग जाते हैं । अतः यह स्पष्ट है कि भारतीय नववर्ष मनाना ईसाई नववर्ष मनाने से पुर्णरूपेण श्रेष्ठ है ।

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

लालकिले का रहस्य

महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय का लाल कोट क्या आप जानते हैं कि दिल्ली के लालकिले का रहस्य क्या है और इसे किसने बनवाया था?

अक्सर हमें यह पढाया जाता है कि दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ ने बनवाया था| लेकिन यह एक सफ़ेद झूठ है और दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ के जन्म से सैकड़ों साल पहले "महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय" द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में ही बनाया गया था|

महाराज अनंगपाल तोमर और कोई नहीं बल्कि महाभारत के अभिमन्यु के वंशज तथा महाराज पृथ्वीराज चौहान के नाना जी थे| इतिहास के अनुसार लाल किला का असली नाम "लाल कोट" है, जिसे महाराज अनंगपाल द्वितीय द्वारा सन 1060 ईस्वी में दिल्ली शहर को बसाने के क्रम में ही बनवाया गया था जबकि शाहजहाँ का जन्म ही उसके सैकड़ों वर्ष बाद 1592 ईस्वी में हुआ है|

दरअसल शाहजहाँ नमक मुसलमान ने इसे बसाया नहीं बल्कि पूरी तरह से नष्ट करने की असफल कोशिश की थी ताकि, वो उसके द्वारा बनाया साबित हो सके लेकिन सच सामने आ ही जाता है| इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि तारीखे फिरोजशाही के पृष्ट संख्या 160 (ग्रन्थ ३) में लेखक लिखता है कि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल ( लाल प्रासाद/ महल ) कि ओर बढ़ा और वहां उसने आराम किया|



सिर्फ इतना ही नहीं अकबरनामा और अग्निपुराण दोनों ही जगह इस बात के वर्णन हैं कि महाराज अनंगपाल ने ही एक भव्य और आलिशान दिल्ली का निर्माण करवाया था| शाहजहाँ से 250 वर्ष पहले ही 1398 ईस्वी में एक अन्य लंगड़ा जेहादी तैमूरलंग ने भी पुरानी दिल्ली का उल्लेख किया हुआ है (जो कि शाहजहाँ द्वारा बसाई बताई जाती है)| यहाँ तक कि लाल किले के एक खास महल मे सुअर (वराह) के मुँह वाले चार नल अभी भी लगे हुए हैं क्या ये शाहजहाँ के इस्लाम का प्रतीक चिन्ह है या हिंदुत्व के प्रमाण?

साथ ही किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित है क्योंकि राजपूत राजा गजो (हाथियों) के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे जबकि इस्लाम जीवित प्राणी के मूर्ति का विरोध करता है| साथ ही लालकिला के दीवाने खास मे केसर कुंड नाम से एक कुंड भी बना हुआ है जिसके फर्श पर हिंदुओं मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है| साथ ही ध्यान देने योग्य बात यह है कि केसर कुंड एक हिंदू शब्दावली है जो कि हमारे राजाओ द्वारा केसर जल से भरे स्नान कुंड के लिए प्राचीन काल से ही प्रयुक्त होती रही है| मजेदार बात यह है कि मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या मीनार का कोई अस्तित्व तक नही है लालकिला के दीवानेखास और दीवानेआम मे|

इतना ही नहीं दीवानेखास के ही निकट राज की न्याय तुला अंकित है जो अपनी प्रजा मे से 99 % भाग (हिन्दुओं) को नीच समझने वाला मुगल कभी भी न्याय तुला की कल्पना भी नही कर सकता जबकि, ब्राह्मणों द्वारा उपदेशित राजपूत राजाओ की न्याय तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय करना हमारे इतिहास मे प्रसिद्द है| दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 ईस्वी के अंबर के भीतरी महल (आमेर/पुराना जयपुर) से मिलती है जो कि राजपूताना शैली मे बना हुई है|

आज भी लाल किले से कुछ ही गज की दूरी पर बने हुए देवालय हैं जिनमे से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकार मंदिर है और, दोनो ही गैर मुस्लिम है जो कि शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं के बनवाए हुए है| इन सब से भी सबसे बड़ा प्रमाण और सामान्य ज्ञान की बात यही है कि लाल किले का मुख्य बाजार चाँदनी चौक केवल हिंदुओं से घिरा हुआ है और, समस्त पुरानी दिल्ली मे अधिकतर आबादी हिंदुओं की ही है साथ ही सनलिष्ट और घुमावदार शैली के मकान भी हिंदू शैली के ही है सोचने वाली बात है कि क्या शाहजहाँ जैसा धर्मांध व्यक्ति अपने किले के आसपास अरबी, फ़ारसी, तुर्क, अफ़गानी के बजाए हम हिंदुओं के लिए हिन्दू शैली में मकान बनवा कर हमको अपने पास बसाता? और फिर शाहजहाँ या एक भी इस्लामी शिलालेख मे लाल किले का वर्णन तक नही है|

"गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता" - अर्थात इस धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है, यही है, यही है । केवल इस अनाम शिलालेख के आधार पर लालकिले को शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया करार दिया गया है जबकि किसी अनाम शिलालेख के आधार पर कभी भी किसी को किसी भवन का निर्माणकर्ता नहीं बताया जा सकता और ना ही ऐसे शिलालेख किसी के निर्माणकर्ता होने का सबूत ही देते हैं जबकि, लालकिले को एक हिन्दू प्रासाद साबित करने के लिए आज भी हजारों साक्ष्य मौजूद हैं| यहाँ तक कि लालकिले से सम्बंधित बहुत सारे साक्ष्य पृथ्वीराज रासो से मिलते है| इसके सैकड़ों प्रमाण हैं कि लाल किला वैदिक नीती से बनी इमारत है और इस बात को लेकर काई बार हिन्दू साहित्य के व हिन्दू पक्ष के इतिहास कारों ने बहस भी की लेकिन नेहरू सरकार द्वारा नकारा गया ॥


इस्लाम को फैलाने का खतरनाक खेल

जमात-ए-इस् लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी कहते हैं कि कुरान के अनुसार विश्व दो भागों में बँटा हुआ है, एक वह जो अल्लाह की तरफ़ हैं और दूसरा वे जो शैतान की तरफ़ हैं। देशो की सीमाओं को देखने का इस्लामिक नज़रिया कहता है कि विश्व में कुल मिलाकर सिर्फ़ दो खेमे हैं, पहला दार-उल-इस् लाम (यानी मुस्लिमों द्वारा शासित) और दार-उल-हर् ब (यानी “नास्तिकों ” द्वारा शासित)। उनकी निगाह में नास्तिक का अर्थ है जो अल्लाह को नहीं मानता, क्योंकि विश्व के किसी भी धर्म के भगवानों को वे मान्यता ही नहीं देते हैं।



जब भी किसी देश में मुस्लिम जनसंख्या एक विशेष अनुपात से ज्यादा हो जाती है तब वहाँ इस्लामिक आंदोलन शुरु होते हैं। शुरुआत में उस देश विशेष की राजनैतिक व्यवस्था सहिष्णु और बहु-संस्कृतीवादी बनकर मुसलमानों को अपना धर्म मानने, प्रचार करने की इजाजत दे देती है, उसके बाद इस्लाम की “अन्य शाखायें” उस व्यवस्था में अपनी टाँग अड़ाने लगती हैं। इसे समझने के लिये हम कई देशों का उदाहरण देखेंगे, आईये देखते हैं कि यह सारा “खेल” कैसे होता है ।

जब तक मुस्लिमों की जनसंख्या किसी देश/प्रदेश /क्षेत्र में लगभग 2% के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय , कानूनपसन्द अल्पसंख्यक बनकर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते, जैसे -
अमेरिका – मुस्लिम 0.6%
ऑस्ट्रेलिय ा – मुस्लिम 1.5%
कनाडा – मुस्लिम 1.9%
चीन – मुस्लिम 1.8%
इटली – मुस्लिम 1.5%
नॉर्वे – मुस्लिम 1.8%

जब मुस्लिम जनसंख्या 2% से 5% के बीच तक पहुँच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलम्ब ियों में अपना “धर्मप्रचार” शुरु कर देते हैं, जिनमें अक्सर समाज का निचला तबका और अन्य धर्मों से असंतुष्ट हुए लोग होते हैं, जैसे कि –
डेनमार्क – मुस्लिम 2%
जर्मनी – मुस्लिम 3.7%
ब्रिटेन – मुस्लिम 2.7%
स्पेन – मुस्लिम 4%
थाईलैण्ड – मुस्लिम 4.6%

मुस्लिम जनसंख्या के 5% से ऊपर हो जाने पर वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलम्ब ियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना “प्रभाव” जमाने की कोशिश करने लगते हैं। उदाहरण के लिये वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर “हलाल” का माँस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि “हलाल” का माँस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यतायें प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में “खाद्य वस्तुओं” के बाजार में मुस्लिमों की तगड़ी पैठ बनी। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्के ट के मालिकों को दबाव डालकर अपने यहाँ “हलाल” का माँस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी “धंधे” को देखते हुए उनका कहा मान लेता है (अधिक जनसंख्या होने का “फ़ैक्टर” यहाँ से मजबूत होना शुरु हो जाता है), ऐसा जिन देशों में हो चुका वह हैं –
फ़्रांस – मुस्लिम 8%
फ़िलीपीन्स – मुस्लिम 6%
स्वीडन – मुस्लिम 5.5%
स्विटजरलैण ्ड – मुस्लिम 5.3%
नीडरलैण्ड – मुस्लिम 5.8%
त्रिनिदाद और टोबैगो – मुस्लिम 6%

इस बिन्दु पर आकर “मुस्लिम” सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके “क्षेत्रों ” में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाये (क्योंकि उनका अन्तिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व “शरीयत” कानून के हिसाब से चले)। जब मुस्लिम जनसंख्या 10% से अधिक हो जाती है तब वे उस देश/प्रदेश /राज्य/क्ष ेत्र विशेष में कानून-व्यव स्था के लिये परेशानी पैदा करना शुरु कर देते हैं, शिकायतें करना शुरु कर देते हैं, उनकी “आर्थिक परिस्थिति” का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़फ़ोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ़्रांस के दंगे हों, डेनमार्क का कार्टून विवाद हो, या फ़िर एम्स्टर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवाद को समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है, जैसे कि –
गुयाना – मुस्लिम 10%
भारत – मुस्लिम 15%
इसराइल – मुस्लिम 16%
केन्या – मुस्लिम 11%
रूस – मुस्लिम 15% (चेचन्या – मुस्लिम आबादी 70%)

जब मुस्लिम जनसंख्या 20% से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न “सैनिक शाखायें” जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरु हो जाता है, जैसे-
इथियोपिया – मुस्लिम 32.8%

जनसंख्या के 40% के स्तर से ऊपर पहुँच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याऐं, आतंकवादी कार्रवाईया ँ आदि चलाने लगते हैं, जैसे –
बोस्निया – मुस्लिम 40%
चाड – मुस्लिम 54.2%
लेबनान – मुस्लिम 59%

जब मुस्लिम जनसंख्या 60% से ऊपर हो जाती है तब अन्य धर्मावलंबि यों का “जातीय सफ़ाया” शुरु किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोड़ना, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है, जैसे –
अल्बानिया – मुस्लिम 70%
मलेशिया – मुस्लिम 62%
कतर – मुस्लिम 78%
सूडान – मुस्लिम 75%

जनसंख्या के 80% से ऊपर हो जाने के बाद तो सत्ता/शासन प्रायोजित जातीय सफ़ाई की जाती है, अन्य धर्मों के अल्पसंख्यक ों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है, सभी प्रकार के हथकण्डे/हथ ियार अपनाकर जनसंख्या को 100% तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है, जैसे –
बांग्लादेश – मुस्लिम 83%
मिस्त्र – मुस्लिम 90%
गाज़ा पट्टी – मुस्लिम 98%
ईरान – मुस्लिम 98%
ईराक – मुस्लिम 97%
जोर्डन – मुस्लिम 93%
मोरक्को – मुस्लिम 98%
पाकिस्तान – मुस्लिम 97%
सीरिया – मुस्लिम 90%
संयुक्त अरब अमीरात – मुस्लिम 96%

बनती कोशिश पूरी 100% जनसंख्या मुस्लिम बन जाने, यानी कि दार-ए-स्सल ाम होने की स्थिति में वहाँ सिर्फ़ मदरसे होते हैं और सिर्फ़ कुरान पढ़ाई जाती है और उसे ही अन्तिम सत्य माना जाता है, जैसे –
अफ़गानिस्ता न – मुस्लिम 100%
सऊदी अरब – मुस्लिम 100%
सोमालिया – मुस्लिम 100%
यमन – मुस्लिम 100%

दुर्भाग्य से 100% मुस्लिम जनसंख्या होने के बावजूद भी उन देशों में तथाकथित “शांति” नहीं हो पाती। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जिन देशों में मुस्लिम जनसंख्या 8 से 10 प्रतिशत हो चुकी होती है, उन देशों में यह तबका अपने खास “मोहल्लो” में रहना शुरु कर देता है, एक “ग्रुप” बनाकर विशेष कालोनियाँ या क्षेत्र बना लिये जाते हैं, उन क्षेत्रों में अघोषित रूप से “शरीयत कानून” लागू कर दिये जाते हैं। उस देश की पुलिस या कानून-व्यवस्था उन क्षेत्रों में काम नहीं कर पाती, यहाँ तक कि देश का न्यायालयीन कानून और सामान्य सरकारी स्कूल भी उन खास इलाकों में नहीं चल पाते (ऐसा भारत के कई जिलों के कई क्षेत्रों में खुलेआम देखा जा सकता है, कई प्रशासनिक अधिकारी भी दबी जुबान से इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन “सेकुलर-देशद्रोहियों” के कारण कोई कुछ नहीं बोलता)।

आज की स्थिति में मुस्लिमों की जनसंख्या समूचे विश्व की जनसंख्या का 22-24% है, लेकिन ईसाईयों, हिन्दुओं और यहूदियों के मुकाबले उनकी जन्मदर को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस शताब्दी के अन्त से पहले ही मुस्लिम जनसंख्या विश्व की 50% हो जायेगी (यदि तब तक धरती बची तो)… भारत में कुल मुस्लिम जनसंख्या 15% के आसपास मानी जाती है, जबकि हकीकत यह है कि उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और केरल के कई जिलों में यह आँकड़ा 40 से 50% तक पहुँच चुका है… अब देश में आगे चलकर क्या परिस्थितियाँ बनेंगी यह कोई भी (“सेकुलरों” को छोड़कर) आसानी से सोच-समझ सकता है ।

(सभी सन्दर्भ और आँकड़े : डॉ पीटर हैमण्ड की पुस्तक “स्लेवरी, टेररिज़्म एण्ड इस्लाम – द हिस्टोरिकल रूट्स एण्ड कण्टेम्पररी थ्रेट तथा लियोन यूरिस – “द हज”, से साभार , विशेष धन्यवाद-भारत विश्व गुरू)

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

गौहत्या पर प्रतिबंध के खिलाफ गाँधी

भारत को अस्थिर करने की योजना का एक भाग के रूप में गौ हत्या शुरू की गई। भारत में पहली क़साईख़ाना 1760 में शुरू किया गया था, एक क्षमता के साथ प्रति दिन 30,000 (हज़ार तीस केवल), कम से कम एक करोड़ गायों को एक साल में मारा गया ! एक सवाल के जवाब में गाँधी ने कहा था कि जिस दिन भारत स्वतंत्रत हो जायेगा उसी दिन से भारत में सभी वध घरों को बंद किया जाएगा, 1929 में एक सार्वजनिक सभा में नेहरू ने कहा कि अगर वह भारत का प्रधानमंत्री बने तो वह पहला काम इन कसाईखानो को बंद करने का करेंगे, आज़ादी के बाद से अब तक 75 करोड़ से अधिक गायों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। 1947 के बाद से संख्या 350 से 36,000 तक बढ़ गई है सरकार की अनुमति से 36,000 कतलखाने चल रहे हैं इसके इलावा जो अवैध रूप से चल रहे हैं वो अलग है उनकी संख्या की कोई पूरी जानकारी नहीं है।

15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने पर देश के कोने – कोने से लाखों पत्र और तार प्रायः सभी जागरूक व्यक्तियों तथा सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा भारतीय संविधान परिषद के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के माध्यम से गाँधी को भेजे गये जिसमें उन्होंने मांग की थी कि अब देश स्वतन्त्र हो गया हैं अतः गौहत्या को बन्द करा दो ।

तब गाँधी ने कहा कि - " हिन्दुस्तान में गौ-हत्या रोकने का कोई कानून बन ही नहीं सकता । इसका मतलब तो जो हिन्दू नहीं हैं उनके साथ जबरदस्ती करना होगा । " – ' प्रार्थना सभा ' ( 25 जुलाई 1947 )



अपनी 4 नवम्बर 1947 की प्रार्थना सभा में गाँधी ने फिर कहा कि - "भारत कोई हिन्दू धार्मिक राज्य नहीं हैं , इसलिए हिन्दुओं के धर्म को दूसरों पर जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता । मैं गौ सेवा में पूरा विश्वास रखता हूँ , परन्तु उसे कानून द्वारा बन्द नहीं किया जा सकता ।"

इससे स्पष्ट हैं कि गाँधी की गौ रक्षा के प्रति कोई आस्था नहीं थी । वह केवल हिन्दुओं की भावनाओं का शौषण करने के लिए बनावटी तौर पर ही गौ रक्षा की बात किया करते थे , इसलिए उपयुक्त समय आने पर देश की सनातन आस्थाओं के साथ विश्वासघात कर गये ।

महान क्रांतिकारी शहीद सरदार ऊधमसिंह

सन 1919 को एक क्रुर अंग्रेज़ अधिकारी भारत मे आया था जिसका नाम था डायर । अमृतसर मे उसकी पोस्टिंग की गई थी और उसने एक रोलेट एक्ट नाम का कानून बनाया जिसमे नागरिकों के मूल अधिकार खत्म होने वाले थे । और नागरिकों की जो थोड़ी बहुत बची कूची आजादी थी वो भी अंग्रेज़ो के पास जाने वाली थी ।

इस रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग मे एक बड़ी सभा आयोजित की गई थी । जिसमे 25000 लोग शामिल हुए थे । उस बड़ी सभा मे डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवायी थी । अगर आप मे से किसी ने पुलिस या सेना मे नोकरी की हो तो आप अंदाजा लगा सकते हैं । 15 मिनट के अंदर 1650 राउंड गोलियां चलवाई थी डायर ने ।
 



उधमसिंह १३ अप्रैल, १९१९ को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।

उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।

बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।

4 जून, 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया। 1974 में ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए।

महान क्रांतिकारी शहीद सरदार ऊधमसिंह की जयंती पर शत-शत नमन

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

जिनके लफ्ज़ो ने बयाँ कि उनकी ज़िंदगानी


पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खाँ के बलिदान दिवस पर भारत माता के वीर सपूतों को हमारा कोटि-कोटि वंदन !!
कृतज्ञ श्रद्धांजली"

ये दोनो देशभक्त आज के ही दिन 1927 में भारत की आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए अंग्रेजों के हाथों शहीद हुए थे। इन पर लखनऊ के निकट काकोरी स्टेशन के पास ट्रेन लूटने का आरोप था और इसी के चलते बिस्मिल और अशफाक उल्ला को फांसी की सजा दी गयी थी। 

इनका जीवन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनके लिखे अमर गीतो ने हर भारतीय के दिल में जगह बनाई और अंग्रेज़ों से भारत की आज़ादी के लिए चिंगारी छेड़ी।


रामप्रसाद बिस्मिल की कविता -

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है ॥



अशफ़ाक़ की आखिरी रात -

"जाऊँगा खाली हाथ मगर,यह दर्द साथ ही जायेगा;जाने किस दिन हिन्दोस्तान,आजाद वतन कहलायेगा।
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं, फिर आऊँगा-फिर आऊँगा; ले नया जन्म ऐ भारत माँ! तुझको आजाद कराऊँगा।।

जी करता है मैं भी कह दूँ, पर मजहब से बँध जाता हूँ; मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कह पाता हूँ।
हाँ, खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूँगा; औ' जन्नत के बदले उससे, यक नया जन्म ही माँगूँगा।।"


अशफ़ाक़ की कुछ और शायरी -

"जिन्दगी वादे-फना तुझको मिलेगी 'हसरत',
तेरा जीना तेरे मरने की बदौलत होगा। "

उपरोक्त पंक्तियाँ अशफ़ाक़ की मज़ार पर लिखी गई हैं ।


कुछ और पंक्तियाँ जो आज़ादी की आग में एक मशाल की तरह थी

"मौत एक बार जब आना है तो डरना क्या है!
हम इसे खेल ही समझा किये मरना क्या है?
वतन हमारा रहे शादकाम और आबाद,
हमारा क्या है अगर हम रहे,रहे न रहे।।"

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

1971 भारतीय सेना की विजय गाथा

फिल्मी पर्दे पर आपने अभिनेताओं को एक साथ दस-दस गुंडों की पिटाई करते या उन्हें सीमाओं पर दुश्मनों को मारते देखा होगा लेकिन अगर आपको असल जिंदगी में हीरो देखने हैं तो आपको सीमाओं पर तैनात उन हीरोज को देखना चाहिए जो खून को जमा देने वाली ठंड में भी हमारी सीमाओं की रक्षा के लिए जी-जान एक कर देते हैं। अगर बहादुरी के सर्वोच्च शिखर को महसूस करना हो तो जैसलमेर जैसी गर्म जगहों पर ऊंठ पर बैठकर हमारी सीमाओं की पहरेदारी करने वाले सैनिकों से मिलना चाहिए जो जला देने वाली गर्मी में भी अपनी परवाह किए बिना देश की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। आज भारतीय सेना दिवस है. एक ऐसा दिन जब हमारी सेना अपनी आजादी का जश्न मनाती है। यूं तो साल के 365 दिन वह हमारी आजादी को बचाएं रखने के लिए संघर्ष करती है लेकिन इस एक दिन यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनकी खुशियों में शामिल हो और उनकी शहादत को याद करें।

1971 का भारत पाक युद्ध कौन भूल सकता है। यह एक ऐसा युद्ध था जिसने इतिहास बदल दिया। इस युद्ध में  पाकिस्तान के जनरल एएके नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया था।  इस आत्मसमर्पण के बाद ही पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश नाम का एक स्वतंत्र राष्ट्र बना था।  भारतीय सेना का यह गौरव हमारे मस्तक का तिलक है।



सन् 1971 में भारत ने लगभग दो सप्ताह के युद्ध में पाकिस्तान पर अभूतपूर्व विजय हासिल कर बांग्लादेश के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। इसे भारत की अब तक की सबसे बड़ी युद्ध विजय कहा जा सकता है |

"पाकिस्तान द्वारा 3 दिसम्बर, 1971 को भारत के पश्चिम में एक व्यापक युद्ध की शुरूआत कर देने के तुरंत बाद सेना मुख्यालय ने पूर्वी कमांड के जी.ओ.सी. इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जे.एस. अरोड़ा को 'आगे बढ़ने' के आदेश दिए। वे इस आकस्मिक घटना के लिए सारे प्रबंध कर चुके थे तथा पूरी तरह से तैयार थे। अगली सुबह से ही 'स्वतंत्रता अभियान शुरू कर दिया गया।'

भारतीय सेना जब ढाका पर नकेल कस रही थी, सेना प्रमुख सैम मानेकशॉ ने अपना मनोवैज्ञानिक आक्रमण आरंभ कर दिया। तंगेल पर कब्जा और पाकिस्तानी सेना के ढाका भागने वाले मार्गों को बंद करने के तुरंत बाद उन्होंने नियाजी को अपना प्रथम संदेश दिया तथा उसमें उन्हें आत्मसमर्पण का सुझाव दिया।

मेजर जनरल फरमान अली पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर के सलाहकार थे। जब उन्होंने देखा कि पाकिस्तानी सेनाओं ने आत्मसमर्पण करना प्रारंभ कर दिया है तथा महसूस किया कि पराजय निश्चित है और सिर्फ कुछ ही दिन दूर है, उन्होंने भागने का प्रयास किया; परंतु असफल रहे। 11 दिसम्बर को उन्होंने गवर्नर के माध्यम से यू.एन. को पाकिस्तानी सेनाओं तथा अन्य सिविल अधिकारियों को पाकिस्तान भेजने की व्यवस्था करने के लिए एक अपील की तथा प्रांत में निर्वाचित सरकार को स्थापित करने की मांग की। 

इससे पहले कि सुरक्षा परिषद इस पर सोच-विचार कर पाती, याह्या खां द्वारा इसे वापस ले लिया गया। सैम मानेकशॉ ने अपनी दूसरी अपील में फरमान अली को संबोधित करते हुए कहा, "आत्मसमर्पण करनेवाली सेनाओं को सुरक्षा तथा न्यायपूर्ण व्यवहार का आश्वासन दिया जाना चाहिए।"

"पेरशान ढाका को डराने के लिए शतरंज के खेल के घोड़ों की भांति आज रात भारतीय घेरेबंदी को कड़ा किया जा रहा है।" याह्या खां, नियाजी को डटे रहने और भारतीयों को ढाका की ओर बढ़ने से रोकने के लिए समझाते रहे तथा उनसे वादा किया कि 'कुछ बड़ा' आने वाला है, अर्थात् यू.एस. का 7वां जहाजी बेड़ा, जो पहले से ही शीघ्रता से बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ रहा था, उनकी सहायता के लिए प्रभावकारी हो जाएगा। उन्होंने यह वादा भी किया कि उनके मित्र राष्ट्र उनके लिए तथा पाकिस्तान के लिए हालातों को पूरी तरह बदल देंगे, लेकिन नियाजी तथा पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर डॉ. ए. एम. मलिक कुछ अलग ही सोच रहे थे।

14 दिसम्बर को जब डॉ. मलिक सरकारी भवन के बाएं भाग में अपने मंत्रिमंडल के साथ एक बैठक कर रहे थे, आई.ए.एफ. की आगे बढ़ने की सूचना पर बैठक स्थान में बवाल खड़ा कर दिया तथा विचलित मलिक को निर्णय लेने के लिए विवश कर दिया। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के साथ इस्तीफा दे दिया तथा इंटरकॉन्टिनेंटल होटल के तटस्थ क्षेत्र में आश्रय ले लिया। 

16 लोक सेवक तथा महानिरीक्षक पहले से ही होटल में आश्रय लिये हुए थे। सारी जिम्मेदारी परेशान नियाजी पर आ गई। उन्होंने आखिरी सैनिक के जिंदा रहने तक संघर्ष करने का निश्चय कर लिया। याह्या खां दोपहर में ही उनकी सहायता हेतु प्रस्तुत हो गए और भारतीय सेना कमांडर के समक्ष उनकी सेनाओं को आत्मसमर्पण करने की आज्ञा दे दी और उन्हें संघर्ष को रोकने तथा पश्चिमी पाकिस्तान के सभी सशस्त्र सैन्यकर्मियों एवं सभी निष्ठावान लोगों की जान बचाने का निर्देश दिया। 

भारतीय सेना जब ढाका के समीप पहुंची, तो खबरें आने लगीं कि यू.एस. 7वां जहाजी बेड़ा अपने नाभिकीय शक्ति-संपन्न विमानवाहक पोत प्रतिष्ठान के साथ प्रशांत पैसिफिक महासागर से बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ रहा है तथा उसका प्रयोजन पूर्वी पाकिस्तान में मौजूद कुछ अमेरिकी कर्मचारियों को मुक्त करवाना है। परंतु वास्तव में उसकी अतिरिक्त क्षमता का प्रयोग, आवश्यकता होने पर, नियाजी की सेनाओं को वहां से निकालने के लिए किया जाना था। 

उसकी विशाल गोलाबारी क्षमता को याह्या खां के लिए उपलब्ध कराया जाना था, ताकि वे ढाका में पाकिस्तानी कसाइयों को पुन: तैनात कर सकें और पूर्वी बंगाल की जनसंख्या में से भारतीय रक्षकों का सफाया कर सकें। प्रतिक्रियास्वरूप भारत ने वायुसेना के विमानों तथा नौसेना के जहाजों का प्रयोग करते हुए चटगांव व कोक्स बाजार की नाकेबंदी कर दी तथा समुद्र-निकास के इन स्थानों को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया।
15 दिसम्बर को जनरल नियाजी ने नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास से वास्तविक आत्मसमर्पण के बिना युद्ध-विराम की संभावना के संबंध में पूछताछ की। सैम मानेकशॉ ने उत्तर दिया कि युद्ध-विराम सिर्फ आत्मसमर्पण के साथ ही स्वीकार किया जाएगा। उन्होंने नियाजी को सुरक्षा तथा न्यायपूर्ण बरताव का वादा किया। उन्होंने 'उनकी सद्भावना के प्रतीक रूप में' 15 दिसम्बर को शाम के 5 बजे से लेकर अगले दिन सुबह 9 बजे तक ढाका पर वायुसेना द्वारा सभी आक्रमण भी बंद करवा दिए तथा साथ ही यह वादा भी किया कि इसका पालन न किए जाने की स्थिति में आक्रमणों को और अधिक तीव्रता से आरंभ कर दिया जाएगा।

नियाजी ने 16 तारीख की सुबह लगभग 8 बजे इस अवधि को छह घंटे बढ़ाने की बात कही तथा इसे स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद उन्होंने कुछ आश्वासन और वादे भी लेने के प्रयास किए; परंतु उन्हें अस्वीकार कर दिया गया। भारतीय सेना प्रमुख ने बिना शर्त आत्मसमर्पण की मांग रखी तथा जेनेवा संधि का सम्मान करते हुए इसके पूर्ण पालन का वादा किया।

16 दिसम्बर को सुबह 10:40 पर - अल्टीमेटम समाप्त होने से पहले ही - पैरा बटालियन, जो ढाका के बाहरी क्षेत्र में पहुंच गई थी, ने मेजर जनरल मोहम्मद जमशेद और उनकी 26 इन्फैंट्री डिवीजन के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। दोपहर के 3.30 बजे मेजर जनरल नागरा ने एक ब्रिगेड प्लस के साथ ढाका में प्रवेश किया तथा समस्त जन-समूह द्वारा उनका प्रफुल्लित स्वागत किया गया।

16 दिसम्बर, 1971 को दोपहर के 2.30 बजे जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण की प्रक्रिया शुरू कर दी तथा शाम के 4:31 बजे तक उन्होंने ऐतिहासिक ढाका रेसकोर्स में पूर्वी फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ वाइस एडमिरल कृष्णन, पूर्व के एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ एयर मार्शल दीवान तथा बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी हाई कमांड के चीफ ऑफ स्टाफ ग्रुप कैप्टन खोंदाकर की उपस्थिति में पूर्वी कमांड के जी.ओ.सी. इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत अरोड़ा के समक्ष औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण कर दिया। 

उल्लेखनीय है कि इसी स्थान पर से मुजीबुर्रहमान ने मार्च 1971 में राष्ट्रपति याह्या खां का जबरदस्त विरोध किया था। ढाका 'खुशी से झूम उठा।' लोगों का यह उन्माद महीनों का भय तथा आतंक की बेहद सहज प्रतिक्रिया थी। समारोह के तुरंत बाद नियाजी ने अपनी कमान को युद्ध-विराम तथा आत्मसमर्पण करने के आदेश जारी कर दिए। 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। याह्या खां पूरी तरह से हार मान चुके थे तथा बांग्लादेश एक स्वतंत्र संप्रभु देश के रूप में अस्तित्व में आ गया।"

(साभार : 1971 भारत-पाक युद्ध, 161वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड की शौर्य गाथा, लेखक-जनरल के.के. नंदा)

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

समलैंगिकता को मान्यता देना अर्थात बढ़ते अपराध और भारत का अंत

   
ज़िंदगी फिर शर्मसार हुई एक पिता ने अपने परिवार को जहर दे दिया और खुद ने भी उसी जहर को पी कर मौत को गले लगा लिया । जब पड़ोसियो से पुलिस ने पुछताछ की तो पड़ोसियो ने टेड़ा मूँह कर जवाब दिया - " बेटा गलत रास्ते पर था साहब, बेचारा क्या करता ?, उसके किसी लड़के के साथ नाजायज संबंध थे । बाप को किसी को मूँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था उसने "

कहते हैं समलैगिंक शर्म महसूस नहीं करते । सच भी होगा पर क्या उनसे जुड़े लोग जो उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाऐंगे, क्या वह भी शर्म महसूस नहीं करेंगे ?

उपरोक्त बस एक काल्पनिक घटना थी पर समलैंगिकता को मान्यता मिलने के बाद कब ये भारत वर्ष में एक बड़ी तादात में घटने लगेंगी, पता ही नहीं चलेगा ।

प्रश्न यही उठता है कि क्या सूप्रिम कोर्ट के फैसले का विरोध करना सही है ? अगर देश की सर्वोच्च न्यायालय ने कोई फैसला लिया है तो उसने इस के सभी पहलुओं पर विचार किया होगा । देश में बढ़ती बलात्कार की घटनाएँ समलैगिंक संबंधो को अनुमती देने पर नहीं बढ़ेगी ?

क्या देश तब शर्म महसूस नहीं करेगा जब समलैगिंता का समर्थन करने वाले समाचार चैनलो पर ये खबर आएगी कि एक बहन ने दुसरी बहन का यौन शोषण किया अथवा किसी भाई ने अपने ही छोटे भाई को अपनी हवस का शिकार बना लिया ।

आज जहाँ पर कई महिलाओं को अपना पेट पालने के लिए जिस्म फरोशी का धंधा करने पर मजबुर होना पड़ता है ऐसे देश में इस प्रकार के संबंधो को मान्यता मिलने के बाद क्या कोई ये गारंटी दे सकता है कि भूख से बेहाल कोई बच्चा किसी समलैंगिक का शिकार नहीं बनेगा ? कोई पुरूष इस प्रकार के कार्य को अंजाम नहीं देगा ?

आज सभी पाश्चात संस्कृति से प्रेरित लोग इसे महज एक पुरानी सोच बताकर, इसका विरोध कर रहे हैं । चर्च में बैठा पादरी इसे हिन्दू और मूसलमानो का धार्मिक विरोध बताकर निंदा किए जा रहा है । पर इसका समर्थन करने वाले उन पादरियो को भूल गए जिन पर बच्चो से अमानवीय यौन संबंध बनाने के आरोप लगे थे ।

ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में रोमन कैथोलिक चर्च के पादरियो पर छः सौ से अधिक बच्चो के साथ यौन शोषण करने की बात सिद्ध हुई थी । इसके लिए सन २००८ में पोप बेनेडिक्ट सोलहवे ने सार्वजनिक तौर माफी भी मांगी थी । जिस धर्म के धार्मिक गुरू छोटे बच्चो को भी अपनी हवस का शिकार बनाने से भी बाज नहीं आए वे लोग समलैंगिकता का समर्थन तो करेंगे ही ।

परन्तु एक सत्य ये भी है कि इसाई और यहुदी धर्म में भी समलैंगिकता को पाप ही माना गया है । खुद को आधुनिक और विज्ञान संमत दिखाने के लिए इसाई और यहुदी इसका समर्थन करते हैं ।

बॉलिवुड़ जगत ऐसे मुद्दो में कुछ ज्यादा ही रूचि दिखा रहा है,यहाँ उन्हे मानव मूल्य और अधिकार नज़र आने लगे है । कारण उनका व्यभिचारी व्यक्तित्व है जो अब तक वो पर्दे के पीछे करते थे अब ये उसे बेपर्दा होकर करना चाहते हैं । जिन्हे स्त्रियों के साथ होने वाला बलात्कार भी सरप्राइज सेक्स लगता हो, जिनके लिए पोर्न फिल्मे मात्र पैसा और पापुलर्टी हो वो लोग समाज की परवाह करेंगे अनपेक्षित है ।



फेसबुक पर GAY FOR A DAY मुहिम के तहत ड़ाली गई तस्वीरे
क्या इन्हे देखकर आपको शर्म महसूस नहीं होती ?


भारत में पहली बार समलैगिंक विवाह छत्तीसगढ़ में डॉ. नीरा रजक और नर्स अंजनी निषाद ने किया था और इसके बाद इसी राज्य में २० साल की रासमति और १३ साल के रूक्मणी ने विवाह रचाया । दोनो को ही समाज से बहिष्कृत कर दिया गया, इन्हे अलग अलग कर दिया गया ।

भारत की प्राचिन संस्कृति में ना ही कहीं समलैगिंक संबंधो का वर्णन है और ना ही यहाँ कि संस्कृति इसे स्वीकार कर सकती है । कोई भी माता-पिता ये नहीं चाहता कि उसका बेटा या बेटी समाज में 'गे' के नाम से पहचाने जाए ।

इसे कानूनी मान्यता मिलने के बाद समाज में केवल अपराध को ही बढ़ावा मिलेगा । कोई पिता अपने बच्चो की हत्या इसलिए कर देगा क्योकि उसने उसे समाज के सामने जाने लायक नहीं छोड़ा । उसके पास केवल दो ही रास्ते होंगे या तो वो अपने बच्चे को मार दे या आत्महत्या कर ले ।

भारत का कोई भी आम इंसान ये स्वीकार नहीं करेगा कि जब वो सड़क से गुजरे अथवा किसी गार्डन में अपने परिवार के साथ गया हो तो उसे एक दुसरे को चुमते दो पुरूष या स्त्रियाँ नज़र आए । वह नहीं चाहता कि भारत में कोई 'गे महोत्सव' भी मनाया जाए । वह अपने बच्चो को एक आदर्श व्यक्ति बनाना चाहता है । भारत के फिल्मी सितारे आधुनिकता के नाम पर भारतीयों को पथभ्रष्ट कर रहे हैं, वहीं गलत तर्क के साथ राजनेता और विदेशी पैसो से चलने वाला मिड़िया देश की प्राथमिक समस्याओं को छोड़कर इस विवाद में लगा हुआ है ।

सूप्रिम कोर्ट का यह फैसला ना केवल धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर लिया गया है बल्कि इसमें भारत के वर्तमान सामाजिक ढ़ांचे को भी ध्यान में रखा है । अगर संसद के द्वारा इसे मान्यता दे दी जाती है तो वह दिन दुर नहीं जब भारत यौन अपराधो में शिरोमणी राष्ट्र होगा।

सूर्य प्रताप सिंह शक्तावत

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

साम्प्रदायिक एवं हिंसा लक्षित अधिनियम - भारत की अखण्ड़ता पर प्रहार


सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाली गैर संवैधानिक, खुद को "सुपर संसद" बताने वाली राष्ट्रिय सलाहकार परिषद ने यह अधिनियम तैयार किया है, इसके २२ सदस्य खुद सोनिया गाँधी द्वारा चयनित है । इस गैर जरूरी संस्था द्वारा इस गैर जिम्मेदाराना अधिनियम को लाना भारत के संघीय स्वरूप को खत्म करने का प्रयास है । 9 अध्याय और 138 अनुच्छेद वाले इस अधिनियम सीधा सा उद्देश्य भारत में हिन्दूओं का खात्मा है । यह अधिनियम जम्मू कश्मीर को छोड़कर भारत के हर राज्य में लागु होगा क्योकि जम्मू कश्मीर में धारा 370 होने  से राज्य की अनुमति लेना आवश्यक है ।


इस अधिनियम के अनुसार दंगे सिर्फ बहुसंख्यक करता है और अल्पसंख्यक दंगो से पीड़ित होते हैं! इस अधिनियम के अनुसार अल्पसंख्यक मूस्लिम, ईसाई और अनुसूचित जाति व जनजाति है । यहाँ अनुसूचित जाति व जनजाति शब्द केवल सांत्वना के लिए जोड़ा गया है क्योंकि उनके लिए पहले ही "अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निरोधक अधिनियम 1989" है जिसका उद्देश्य उनकी अत्याचारो से रक्षा है अतः यह अधिनियम केवल और केवल धार्मिक अल्पसंख्यको के लिए है । यह अधिनियम मूसलमानो और इसाईयों को दंगो के लिए प्रोत्साहित करेगा और हिन्दू उन पर होने वाली कार्यवाही से हतोत्साहित होगा फिर उसके पास दो ही रास्ते होंगे या तो वो कायर बने या आतंकवादी ।

मान लिए जाए आपके शहर में दंगा होता है और अगर आप बहुसंख्यक है तो आप पीड़ित होकर भी प्रकरण दर्ज नहीं करा पाऐंगे पर यदि किसी अल्पसंख्यक ने आपके खिलाफ प्रकरण दर्ज कराया है तो उसे सबुत देने की आवश्यकता नहीं है, ये आपको साबित करना होगा कि आप निर्दोष हैं । अगर थानेदार अल्पसंख्यक की रिपोर्ट दर्ज नहीं करता तो उसकी नौकरी तक जा सकती है पर बहुसंख्यक की रिपोर्ट दर्ज करने के पूर्व उसे पुरी छानबीन करनी होगी कि रिपोर्ट सत्य है या नहीं और ना दर्ज करने पर उसकी नौकरी सूरक्षित रहेगी ।

यह सर्वमान्य है कि दंगे कि शुरूआत मूस्लिम समूदाय द्वारा किए गए कृत्यो द्वारा ही होता है परंतु इस अधिनियम के अनुसार यदि किसी बहुसंख्यक का घर जला दिया जाए अथवा किसी बहुसंख्यक महिला बलात्कर का शिकार हो तो इस अधिनियम के तहत वह अपराध की श्रेणी में नहीं आता ।



इसके अलावा यदि किसी बहुसंख्यक व्यक्ति से कोई अल्पसंख्यक किराए पर मकान, दुकान चाहता है या उसके यहाँ मजदूरी की इच्छा व्यक्त करता है और बहुसंख्यक व्यक्ति उसे मना कर दें तो अल्पसंख्यक बहुसंख्यक के विरूद्ध प्रकरण दर्ज करा सकता है । वो उसे धार्मिक कट्टरता, आतंकवाद जैसे मुद्दो पर फसा कर अपनी शत्रुता निकाल सकता है इसके लिए उसे किसी सबुत की आवश्यता नहीं, साबित तो उस व्यक्ति को करना होगा जिस पर आरोप लगे हैं इसके लिए उसे अपने बेगुनाह होने के सबुत तलाशने होंगे ।

इसके अधिनियम के अनुसार अल्पसंख्यको के विरूद्ध कुछ कहना, किसी भी प्रकार का गलत प्रचार करना अपराध है यदि किसी राज्य में हुए दंगे की घटना को कोई समाचार पत्र प्रकाशित करता है और उस पर अल्पसंख्यक ये आरोप लगाए कि यह अल्पसंख्यको के विरूद्ध नफरत फैला रहा है तो उस पत्रकार और उस संस्था के अध्यक्ष को गिरफ्तार कर लिया जाएगा । इस नियम के अनुसार गिरफ्तारी के लिए गैर जमानती वारंट होगा अथवा वारंट ना होने पर भी गिरफ्तार किया जा सकेगा ।


इस प्रस्तावित अधिनियम के प्रावधानो का क्रियांवन साम्प्रदायिक सौहार्द हेतु गठित राष्ट्रीय प्राधिकरण करेगी जिसमें 7 सदस्य होंगे जिसमें से 6 अल्पसंख्यक होंगे अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी अनिवार्य रूप से अल्पसंख्यक होंगे । इस अधिनियम के अनुसार अल्पसंख्यक को न्याय भी अल्पसंख्यक न्यायाधीश या अधिकारी ही दिला सकते हैं ।

इस प्राधिकरण का सदस्य बनने हेतु किसी भी विशेष योग्यता अर्थात उच्च या सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत न्यायाधीश होना जरूरी नहीं इसमें कोई भी नागरिक जिसका साम्प्रदायिक सौहार्द, मानव अधिकार इत्यादि विषयो में के प्रचार प्रसार में योगदान हो वो राष्ट्रीय अथवा राज्य प्राधिकरण का सदस्य बन सकता है ।

इस अधिनियम के अनुसार प्राधिकरण के चयनित 7 सदस्य किसी भी व्यक्ति के प्रति उत्तरदायी नहीं होगें । और उनको चुनने वालो में होंगे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री,लोकसभा में विपक्षी नेता तथा सभी प्रमूख राष्ट्रीय दलो के एक-एक सदस्य ।मतलब सात में से तीन तो कांग्रेस अपने पहुँचा ही देगी शेष साथी दलो की महरबानी तो रहेगी ही ।

राष्ट्रीय प्राधिकरण का सेना,सुरक्षाबलो, पुलिस तथा लोकसेवा के स्थानांतरण और पदस्थापन पर अधिकार होगा तथा सूरक्षाबलो और पुलिस को आदेश देने का अधिकार भी इसके पास होगा अर्थात किसी भी छोटी सी घटना या अफवाह के चलते भी राष्ट्रीय प्राधिकरण राज्य में हस्तक्षेप कर सकती है । प्राधिकरण राज्य सरकार के समस्त अधिकारो को अपने हाथ में ले सकती है और राज्य सरकार को बर्खास्त भी कर सकती है ।


चूँकि यह अधिनियम कांग्रेस पोषित गैर निर्वाचित संस्था एन. ए. सी. द्वारा बनाया गया है इसलिए ये चुनावी माहौल में अपनी डुबती नय्या को अल्पसंख्यको के सहारे पार करने की एक आखरी कोशिश है कांग्रेस मूसलमानो को यह बताना चाहती है वो ही उनकी सबसे बड़ी शुभचिंतक है इसके अतिरिक्त कोई नहीं ।

इस अधिनियम के अनुसार अगर दंगो की शुरूआत मूसलमान करते हैं तो भी दोषी हिन्दू ही होगा । उदाहरण के लिए गोधरा काण्ड़ में मारे गए कारसेवक हिंसा का शिकार नहीं होंगे, ना ही उन्हे कोई सहायता दी जा सकेगी इसके विपरीत हिंसा करने वाले मूस्लिम अगर प्रकरण दर्ज करवा दें तो बिना सबुत, बिना वारंट पीड़ित हिन्दु को जेल भेज दिया जाएगा और तब तक उसे नहीं छोड़ा जाएगा जब तक वो खुद को निर्दोष साबित ना कर दे ।


आपके मन में प्रश्न होगा पश्चिम बंगाल के कई जिलों में तो मूस्लिम बहुसंख्यक है तो क्या इस अधिनियम में उन्हे बहुसंख्यक माना जाएगा ?

इसका उत्तर है नहीं । इस अधिनियम के अनुच्छेद 3 के अनुसार यह अधिनियम राज्यवार लागु होगा अर्थात पुरे पश्चिम बंगाल राज्य के हिसाब से हिन्दू बहुसंख्यक है इसलिए उन जिलो में भी जहाँ मूस्लिम बहुसंख्यक है उन्हे अल्पसंख्यक ही माना जाएगा ।


इस अधिनियम का लागु होना असंभव ही नज़र आता है पर सोनिया और उसकी ब्रिगेड़ का असली चेहरा लोगो के सामने लाना भी ज़रूरी है । अपने आप को भारत भाग्य विधाता बताने वाली कांग्रेस इस सांम्प्रदायिक अधिनियम को लाना चाहती है इससे दंगे कम नहीं होंगे बल्कि बढ़ेंगे । भाजपा और उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने इसका विरोध भी किया है जिसके चलते कांग्रेस की मूश्किले बढ़ गई हैं । संघ और विश्व हिन्दू परिषद ने भी एक व्यापक विरोध की चेतावनी दी है जिसके चलते कांग्रेस इसमें बदलाव को भी तैयार हुई है पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक शब्द हटाने तक ही ये बदलाव सीमित है, इस अधिनियम का एक भी अनुच्छेद अगर लागु किया जाए तो वो भारत की शांति और अखण्ड़ता के लिए प्राणघातक ही होगा ।

सूर्य प्रताप सिंह शक्तावत

रविवार, 1 दिसंबर 2013

महाभारत यूग के विमान की खोज



ओसामा बिन लादेन नामक इस्लामी आतंकवादी को खोजते हुए अमेरिका के सैनिकों को अफगानिस्तान (कंधार) की एक गुफा में 5000 साल पहले का "विमान" मिला था, जिसे महाभारत काल का बताया जा रहा है ।
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि Russian Foreign Intelligence ने साफ़ साफ़ बताया है कि ये वही विमान है जो संस्कृत रचित महाभारत में वर्णित है और जब इसका इंजन शुरू होता है तो बड़ी मात्रा में प्रकाश का उत्सर्जन होता है ।

हालाँकि इस न्यूज़ को भारत के बिकाऊ मिडिया ने महत्व नहीं दिया क्यों कि उनकी नजर में भारत के हम हिंदूओ की महिमा बढ़ाने वाली ये खबर सांप्रदायिक है ।

ज्ञातव्य है कि Russian Foreign Intelligence Service (SVR) report द्वारा 21 December 2010 को एक रिपोर्ट पेश की गयी जिसमे बताया गया है कि ये विमान द्वारा उत्पन्न एक रहस्यमयी Time Well क्षेत्र है और जिसकी खतरनाक electromagnetic shockwave से ये अमेरिका के सील कमांडो मारे गये या गायब हो गये तथा इसी की वजह से कोई गुफा में नहीं जा पा रहा था ।

शायद आप लोगों को याद होगा कि महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी एवं मामा शकुनि गंधार के ही थे ।
महाभारत में इस विमान का वर्णन करते हुए कहा गया है कि -
हम एक विमान जिसमे कि चार मजबूत पहिये लगे हुए हैं एवं परिधि में बारह हाथ के हैं इसके अलावा 'प्रज्वलन प्रक्षेपत्रों ' से सुसज्जित है  परिपत्र 'परावर्तक' के माध्यम से संचालित होता है और उसके अन्य घातक हथियारों का इस्तेमाल करते हैं ।

जब उसे किसी भी लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर प्रक्षेपित किया जाता है तो तुरंत वह 'अपनी शक्ति के साथ यह भस्म' कर देता है  और जो जाते समय जो एक 'प्रकाश की शाफ्ट' का उत्पादन किया ।

( जाहिर सी बात है कि महाभारत में विमान एवं मिसाइल की बात की जा रही है )
हमारे महाभारत के इसी बात को US Military के scientists सत्यापित करते हुए यह बताते हैं किये विमान 5000 हज़ार पुराना (महाभारत कालीन) है और जब कमांडो इसे निकालने का प्रयास कर रहे थे तो ये सक्रिय हो गया जिससे इसके चारों और Time Well क्षेत्र उत्पन्न हो गया और यही क्षेत्र विमान को पकडे हुए है इसीलिए  इस Time Well क्षेत्र के सक्रिय होने के बाद 8 सील कमांडो गायब हो गए ।

जानकारी के लिए बता दूँ कि Time Well क्षेत्र  विद्युत चुम्बकीये क्षेत्र होता है जो हमारे आकाश गंगा की तरह सर्पिलाकार होता है ।

वहीं एक कदम आगे बढ़ कर Russian Foreign Intelligence ने तो साफ़ साफ़ बताया कि ये वही विमान है जो संस्कृत रचित महाभारत में वर्णित है।

सिर्फ इतना ही नहीं SVR report का कहना है कि यह क्षेत्र 5 August को फिर सक्रिय हुआ था जिससे एक बार फिर electromagnetic shockwave नामक खतरनाक किरणें उत्पन्न हुई और ये इतनी खतरनाक थी कि इससे 40 सिपाही तथा trained German Shepherd dogs भी इसकी चपेट में आ गए।

ये प्रत्यक्ष प्रमाण है हमारे हिन्दू सनातन धर्म के उत्कृष्ट विज्ञान का और साफ साफ तमाचा है उन सेकुलरों और मुस्लिमों के मुंह पर जो हमारे हिन्दू सनातन धर्म पर ऊंगली उठाते हैं और जिन्हें महाभारत एक काल्पनिक कथा मात्र लगती है ।

External links:
Russian Report Link
Us Report Link
Viman Shastra Wiki


परन्तु केवल महाभारत ही नहीं रामायण में भी विमान का उपयोग किसी से छुपा नहीं है । पुष्पक विमान रावण ने अपने भाई कुबेर से बलपूर्वक हासिल किया था।पुष्पक विमान का प्रारुप एवं निर्माण विधि ब्रह्मर्षि अंगिरा ने बनायी और निर्माण एवं साज-सज्जा भगवान विश्वकर्मा द्वारा की गयी थी। इसी से वह 'शिल्पी' कहलाये।

 श्रीलंका का इंटरनेशनल रामायण रिसर्च सेंटर और वहां के पर्यटन मंत्रालय ने मिलकर श्री लंका में अब तक रावण के चार हवाई अड्डे भी खोजे हैं, जिनके नाम उसानगोडा , गुरुलोपोथा , तोतुपोलाकंदा तथा वरियापोला है ।




शिवकर बापूजी तलपडे द्वारा बनाया गया विमान भी देखें