गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

समलैंगिकता को मान्यता देना अर्थात बढ़ते अपराध और भारत का अंत

   
ज़िंदगी फिर शर्मसार हुई एक पिता ने अपने परिवार को जहर दे दिया और खुद ने भी उसी जहर को पी कर मौत को गले लगा लिया । जब पड़ोसियो से पुलिस ने पुछताछ की तो पड़ोसियो ने टेड़ा मूँह कर जवाब दिया - " बेटा गलत रास्ते पर था साहब, बेचारा क्या करता ?, उसके किसी लड़के के साथ नाजायज संबंध थे । बाप को किसी को मूँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था उसने "

कहते हैं समलैगिंक शर्म महसूस नहीं करते । सच भी होगा पर क्या उनसे जुड़े लोग जो उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाऐंगे, क्या वह भी शर्म महसूस नहीं करेंगे ?

उपरोक्त बस एक काल्पनिक घटना थी पर समलैंगिकता को मान्यता मिलने के बाद कब ये भारत वर्ष में एक बड़ी तादात में घटने लगेंगी, पता ही नहीं चलेगा ।

प्रश्न यही उठता है कि क्या सूप्रिम कोर्ट के फैसले का विरोध करना सही है ? अगर देश की सर्वोच्च न्यायालय ने कोई फैसला लिया है तो उसने इस के सभी पहलुओं पर विचार किया होगा । देश में बढ़ती बलात्कार की घटनाएँ समलैगिंक संबंधो को अनुमती देने पर नहीं बढ़ेगी ?

क्या देश तब शर्म महसूस नहीं करेगा जब समलैगिंता का समर्थन करने वाले समाचार चैनलो पर ये खबर आएगी कि एक बहन ने दुसरी बहन का यौन शोषण किया अथवा किसी भाई ने अपने ही छोटे भाई को अपनी हवस का शिकार बना लिया ।

आज जहाँ पर कई महिलाओं को अपना पेट पालने के लिए जिस्म फरोशी का धंधा करने पर मजबुर होना पड़ता है ऐसे देश में इस प्रकार के संबंधो को मान्यता मिलने के बाद क्या कोई ये गारंटी दे सकता है कि भूख से बेहाल कोई बच्चा किसी समलैंगिक का शिकार नहीं बनेगा ? कोई पुरूष इस प्रकार के कार्य को अंजाम नहीं देगा ?

आज सभी पाश्चात संस्कृति से प्रेरित लोग इसे महज एक पुरानी सोच बताकर, इसका विरोध कर रहे हैं । चर्च में बैठा पादरी इसे हिन्दू और मूसलमानो का धार्मिक विरोध बताकर निंदा किए जा रहा है । पर इसका समर्थन करने वाले उन पादरियो को भूल गए जिन पर बच्चो से अमानवीय यौन संबंध बनाने के आरोप लगे थे ।

ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में रोमन कैथोलिक चर्च के पादरियो पर छः सौ से अधिक बच्चो के साथ यौन शोषण करने की बात सिद्ध हुई थी । इसके लिए सन २००८ में पोप बेनेडिक्ट सोलहवे ने सार्वजनिक तौर माफी भी मांगी थी । जिस धर्म के धार्मिक गुरू छोटे बच्चो को भी अपनी हवस का शिकार बनाने से भी बाज नहीं आए वे लोग समलैंगिकता का समर्थन तो करेंगे ही ।

परन्तु एक सत्य ये भी है कि इसाई और यहुदी धर्म में भी समलैंगिकता को पाप ही माना गया है । खुद को आधुनिक और विज्ञान संमत दिखाने के लिए इसाई और यहुदी इसका समर्थन करते हैं ।

बॉलिवुड़ जगत ऐसे मुद्दो में कुछ ज्यादा ही रूचि दिखा रहा है,यहाँ उन्हे मानव मूल्य और अधिकार नज़र आने लगे है । कारण उनका व्यभिचारी व्यक्तित्व है जो अब तक वो पर्दे के पीछे करते थे अब ये उसे बेपर्दा होकर करना चाहते हैं । जिन्हे स्त्रियों के साथ होने वाला बलात्कार भी सरप्राइज सेक्स लगता हो, जिनके लिए पोर्न फिल्मे मात्र पैसा और पापुलर्टी हो वो लोग समाज की परवाह करेंगे अनपेक्षित है ।



फेसबुक पर GAY FOR A DAY मुहिम के तहत ड़ाली गई तस्वीरे
क्या इन्हे देखकर आपको शर्म महसूस नहीं होती ?


भारत में पहली बार समलैगिंक विवाह छत्तीसगढ़ में डॉ. नीरा रजक और नर्स अंजनी निषाद ने किया था और इसके बाद इसी राज्य में २० साल की रासमति और १३ साल के रूक्मणी ने विवाह रचाया । दोनो को ही समाज से बहिष्कृत कर दिया गया, इन्हे अलग अलग कर दिया गया ।

भारत की प्राचिन संस्कृति में ना ही कहीं समलैगिंक संबंधो का वर्णन है और ना ही यहाँ कि संस्कृति इसे स्वीकार कर सकती है । कोई भी माता-पिता ये नहीं चाहता कि उसका बेटा या बेटी समाज में 'गे' के नाम से पहचाने जाए ।

इसे कानूनी मान्यता मिलने के बाद समाज में केवल अपराध को ही बढ़ावा मिलेगा । कोई पिता अपने बच्चो की हत्या इसलिए कर देगा क्योकि उसने उसे समाज के सामने जाने लायक नहीं छोड़ा । उसके पास केवल दो ही रास्ते होंगे या तो वो अपने बच्चे को मार दे या आत्महत्या कर ले ।

भारत का कोई भी आम इंसान ये स्वीकार नहीं करेगा कि जब वो सड़क से गुजरे अथवा किसी गार्डन में अपने परिवार के साथ गया हो तो उसे एक दुसरे को चुमते दो पुरूष या स्त्रियाँ नज़र आए । वह नहीं चाहता कि भारत में कोई 'गे महोत्सव' भी मनाया जाए । वह अपने बच्चो को एक आदर्श व्यक्ति बनाना चाहता है । भारत के फिल्मी सितारे आधुनिकता के नाम पर भारतीयों को पथभ्रष्ट कर रहे हैं, वहीं गलत तर्क के साथ राजनेता और विदेशी पैसो से चलने वाला मिड़िया देश की प्राथमिक समस्याओं को छोड़कर इस विवाद में लगा हुआ है ।

सूप्रिम कोर्ट का यह फैसला ना केवल धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर लिया गया है बल्कि इसमें भारत के वर्तमान सामाजिक ढ़ांचे को भी ध्यान में रखा है । अगर संसद के द्वारा इसे मान्यता दे दी जाती है तो वह दिन दुर नहीं जब भारत यौन अपराधो में शिरोमणी राष्ट्र होगा।

सूर्य प्रताप सिंह शक्तावत

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