बुधवार, 17 जून 2015

राणा फ़तेह सिंह और उनकी राष्ट्रभक्ति

 राणा फ़तेह सिंह 

स्वामी दयानंद के जीवन के अंतिम वर्ष राजपूताने में राजपूत राजाओं का ध्यान भोग-विलास से हटाकर उनके पूर्वजों की वीरता और देशभक्ति स्मरण करवाकर, उन्हें प्रजा के लिये न्याय प्रिय एवं हितेषी बनाकर, उन्हें संगठित कर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का आवाहन करना था। स्वामी दयानंद की असमय मृत्यु के कारण उनका यह उद्देश्य पूर्ण न हो सका। स्वामी जी के उपदेशों से प्रेरणा पाकर अनेक राजाओं के मन में देशप्रेम की लहरें हिलोरे मारने लगी थी। उन्हीं राजाओं में से एक थे राणा फ़तेह सिंह जी। राणा फ़तेह सिंह जी स्वामी दयानंद के शिष्य राणा सज्जन सिंह जी के पुत्र थे। आप अपने पिता के समान देशभक्त और स्वाभिमानी थे।

राणा फतेह सिंह और कवि शिरोमणि केसरी सिंह बारहठ 



लार्ड कर्जन द्वारा १९०३ में अंग्रेजों की धाक ज़माने के लिए दिल्ली में दरबार का आयोजन किया गया था। देश के सभी राजाओं को उस दरबार में आने और भेंट लाने के लिए आमंत्रित किया गया था। कर्जन को ऐसा लगा की अगर मेवाड़ के राणा उसके राजसूय यज्ञ में भाग लेने नहीं आये तो उसका यज्ञ सम्पूर्ण नहीं होगा। आज तक मेवाड़ का कोई भी राणा दिल्ली नहीं गया था क्यूंकि न उन्होंने कभी भी मुगलों की पराधीनता स्वीकार की थी और न ही उन्होंने अपना स्वाभिमान खोकर जीना सीखा था जबकि कर्जन राणा को अपने हाथी के पीछे चलाने का और दरबार में बैठ कर उनसे भेंट लेने का सपना देख रहा था। कूट नीति से मवाद का राणा को किसी प्रकार दिल्ली आने के लिए राजी कर लिया गया। मगर मवाद की जनता को उनका यह निर्णय स्वाभिमान पर चोट के समान लग रहा था।

राजस्थान के कवि शिरोमणि अपने कर्तव्य को अभी नहीं भूले थे। स्वामी दयानंद के शिष्य बारहठ परिवार के केसरी सिंह को जब यह समाचार मिला तो उन्होंने १३ दोहे राणा फ़तेह सिंह को लिख कर भेजे। राणा जी की विशेष रेल गाड़ी दिल्ली की लिए चल दी थी। उन्हें यह दोहे रूपी सन्देश अगले स्टेशन पर मिले।

यह दोहे अर्थ सहित यहाँ पर दिए गये हैं

पग पग भम्या पहाड,धरा छांड राख्यो धरम |

(ईंसू) महाराणा'र मेवाङ, हिरदे बसिया हिन्द रै ||1||



भयंकर मुसीबतों में दुःख सहते हुए मेवाड़ के महाराणा नंगे पैर पहाडों में घुमे ,घास की रोटियां खाई फिर भी उन्होंने हमेशा धर्म की रक्षा की | मातृभूमि के गौरव के लिए वे कभी कितनी ही बड़ी मुसीबत से विचलित नहीं हुए उन्होंने हमेशा मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है वे कभी किसी के आगे नहीं झुके | इसीलिए आज मेवाड़ के महाराणा हिंदुस्तान के जन जन के हृदय में बसे है |



घणा घलिया घमसांण, (तोई) राणा सदा रहिया निडर |

(अब) पेखँतां, फ़रमाण हलचल किम फ़तमल! हुवै ||2||



अनगिनत व भीषण युद्ध लड़ने के बावजूद भी मेवाड़ के महाराणा कभी किसी युद्ध से न तो विचलित हुए और न ही कभी किसी से डरे उन्होंने हमेशा निडरता ही दिखाई | लेकिन हे महाराणा फतह सिंह आपके ऐसे शूरवीर कुल में जन्म लेने के बावजूद लार्ड कर्जन के एक छोटे से फरमान से आपके मन में किस तरह की हलचल पैदा हो गई ये समझ से परे है |



गिरद गजां घमसांणष नहचै धर माई नहीं |

(ऊ) मावै किम महाराणा, गज दोसै रा गिरद मे ||3||





मेवाड़ के महाराणाओं द्वारा लड़े गए अनगिनत घमासान युद्धों में जिनमे हजारों हाथी व असंख्य सैनिक होते थे कि उनके लिए धरती कम पड़ जाती थी आज वे महाराणा अंग्रेज सरकार द्वारा २०० गज के कक्ष में आयोजित समरोह में कैसे समा सकते है ? क्या उनके लिए यह जगह काफी है ?



ओरां ने आसान , हांका हरवळ हालणों |

(पणा) किम हालै कुल राणा, (जिण) हरवळ साहाँ हंकिया ||4||





अन्य राजा महाराजाओं के लिए तो यह बहुत आसान है कि उन्हें कोई हांक कर अग्रिम पंक्ति में बिठा दे लेकिन राणा कुल के महाराणा को वह पंक्ति कैसे शोभा देगी जिस कुल के महाराणाओं ने आज तक बादशाही फौज के अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं को युद्ध में खदेड़ कर भगाया है |



नरियंद सह नजरांण, झुक करसी सरसी जिकाँ |

(पण) पसरैलो किम पाण, पाणा छतां थारो फ़ता! ||5||





अन्य राजा जब अंग्रेज सरकार के आगे नतमस्तक होंगे और उसे हाथ बढाकर झुक कर नजराना पेश करेंगे | उनकी तो हमेशा झुकने की आदत है वे तो हमेशा झुकते आये है लेकिन हे सिसोदिया बलशाली महाराणा उनकी तरह झुक कर अंग्रेज सरकार को नजराना पेश करने के लिए आपका हाथ कैसे बढेगा ? जो आज तक किसी के आगे नहीं बढा और न ही झुका |



सिर झुकिया सह शाह, सींहासण जिण सम्हने |

(अब) रळनो पंगत राह, फ़ाबै किम तोने फ़ता! ||6||





हे महाराणा फतह सिंह ! जिस सिसोदिया कुल सिंहासन के आगे कई राजा,महाराजा,राव,उमराव ,बादशाह सिर झुकाते थे | लेकिन आज सिर झुके राजाओं की पंगत में शामिल होना आपको कैसे शोभा देगा ?



सकल चढावे सीस , दान धरम जिण रौ दियौ |

सो खिताब बखसीस , लेवण किम ललचावसी ||7||





जिन महाराणाओं का दिया दान,बख्शिसे व जागीरे लोग अपने माथे पर लगाकर स्वीकार करते थे | जो आजतक दूसरो को बख्शीस व दान देते आये है आज वो महाराणा खुद अंग्रेज सरकार द्वारा दिए जाने वाले स्टार ऑफ़ इंडिया नामक खिताब रूपी बख्शीस लेने के लालच में कैसे आ गए ?



देखेला हिंदवाण, निज सूरज दिस नह सूं |

पण "तारा" परमाण , निरख निसासा न्हांकसी ||8||





हे महाराणा फतह सिंह हिंदुस्तान की जनता आपको अपना हिंदुआ सूर्य समझती है जब वह आपकी तरफ यानी अपने सूर्य की और स्नेह से देखेगी तब आपके सीने पर अंग्रेज सरकार द्वारा दिया गया " तारा" (स्टार ऑफ़ इंडिया का खिताब ) देख उसकी अपने सूर्य से तुलना करेगी तो वह क्या समझेगी और मन ही मन बहुत लज्जित होगी |



देखे अंजस दीह, मुळकेलो मनही मनां |

दंभी गढ़ दिल्लीह , सीस नमंताँ सीसवद ||9||





जब दिल्ली की दम्भी अंग्रेज सरकार हिंदुआ सूर्य सिसोदिया नरेश महाराणा फतह सिंह को अपने आगे झुकता हुआ देखेगी तो तब उनका घमंडी मुखिया लार्ड कर्जन मन ही मन खुश होगा और सोचेगा कि मेवाड़ के जिन महाराणाओं ने आज तक किसी के आगे अपना शीश नहीं झुकाया वे आज मेरे आगे शीश झुका रहे है |



अंत बेर आखीह, पताल जे बाताँ पहल |

(वे) राणा सह राखीह, जिण री साखी सिर जटा ||10||





अपने जीवन के अंतिम समय में आपके कुल पुरुष महाराणा प्रताप ने जो बाते कही थी व प्रतिज्ञाएँ की थी व आने वाली पीढियों के लिए आख्यान दिए थे कि किसी के आगे नहीं झुकना ,दिल्ली को कभी कर नहीं देना , पातळ में खाना खाना , केश नहीं कटवाना जिनका पालन आज तक आप व आपके पूर्वज महाराणा करते आये है और हे महाराणा फतह सिंह इन सब बातों के साक्षी आपके सिर के ये लम्बे केश है |



"कठिण जमानो" कौल, बाँधे नर हीमत बिना |

(यो) बीराँ हंदो बोल, पातल साँगे पेखियो ||11||





हे महाराणा यह समय बहुत कठिन है इस समय प्रतिज्ञाओं और वचन का पालन करना बिना हिम्मत के संभव नहीं है अर्थात इस कठिन समय में अपने वचन का पालन सिर्फ एक वीर पुरुष ही कर सकता है | जो शूरवीर होते है उनके वचनों का ही महत्व होता है | ऐसे ही शूरवीरों में महाराणा सांगा ,कुम्भा व महाराणा प्रताप को लोगो ने परखा है |



अब लग सारां आस , राण रीत कुळ राखसी |

रहो सहाय सुखरास , एकलिंग प्रभु आप रै ||12||





हे महाराणा फतह सिंह जी पुरे भारत की जनता को आपसे ही आशा है कि आप राणा कुल की चली आ रही परम्पराओं का निरवाह करेंगे और किसी के आगे न झुकने का महाराणा प्रताप के प्रण का पालन करेंगे | प्रभु एकलिंग नाथ इस कार्य में आपके साथ होंगे व आपको सफल होने की शक्ति देंगे |



मान मोद सीसोद, राजनित बळ राखणो |

(ईं) गवरमेन्ट री गोद, फ़ळ मिठा दिठा फ़ता ||13||

हे महाराणा सिसोदिया राजनैतिक इच्छा शक्ति व बल रखना इस सरकार की गोद में बैठकर आप जिस मीठे फल की आस कर रहे है वह मीठा नहीं खट्ठा है |

केसरी सिंह बारहठ की चेतावनी सुनकर महाराणा का स्वाभिमान चेता। उनकी गाड़ी सिल्ली अवश्य पहुँच गई थी पर वह वहाँ पर उतरे नहीं अपितु अगली गाड़ी से वापिस चल दिये थे। जब दिल्ली में कर्जन दरबार लगा रहा था तब महाराणा की विशेष गाड़ी उदयपुर की और लौट रही थी। कर्जन के दरबार में महाराणा की खली कुर्सी फिरंगियों को चिड़ा रही थी।



वीर फ़तेह सिंह और अंग्रेजों का अहम



मई १९१० में अंग्रेजों के सम्राट एडवर्ड सात की मृत्यु के पश्चात उसका लड़का जॉर्ज पंचम राजगद्दी पर बैठा। लार्ड हार्डिंग भारत का वाइसराय बना और भारत में सामान्य प्रजा में बढ़ रही असंतुष्ठता और क्रांति की भावना को शांत करने के लिये जॉर्ज पंचम भारत आया। अंग्रेजों ने १२ दिसम्बर को दिल्ली में राजदरबार रचकर भारतीय प्रजा की राजभक्ति का प्रदर्शन करने का विचार बनाया । स्वाभिमान के प्रतिक मेवाड़ के राणा फतेह सिंह ठीक उसी समय पर अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने बेटे की बीमारी का बहाना बनाकर अंग्रेजों से टरक गया और बरोड़ा नरेश सया जी राव गायकवाड़ दरबार के समय निर्धारित शिष्टता के व्यवहार की अवहेलना कर अंग्रेज सरकार की किरकरी करी और भारतीय जनता ने राष्ट्रीय गर्व का अनुभव किया।



महाराणा फ़तेह सिंह द्वारा अंग्रेजों की ट्रेन



महाराणा फ़तेह सिंह द्वारा अंग्रेजों की ट्रेन को जब्त करने का किस्सा बेहद प्रसिद्द हैं। अंग्रेजों ने उदयपुर और चितोड़ गढ़ के बीच एक ट्रेन चलानी आरंभ कर दी। रेल लाइन भूपाल सागर तालाब के समीप से गुजरती थी। एक बार तालाब के टूट जाने से रेल की पटरियाँ बह गई। अंग्रेजों ने महाराणा को पत्र लिखा की उनके तालाब के कारण रेल की पटरी बह गई  और इससे अंग्रेजों को १६ लाख का नुकसान हो गया। अत: इस नुक्सान की पूर्ति मेवाड़ सरकार को करनी चाहिए। महाराणा ने अंग्रेजों के पत्र को सुनकर उसका यह उत्तर दिया की चूँकि भूपाल सागर तालाब पहले बना था और रेललाइन बाद में निकाली गई थी इसलिए रेलगाड़ी की घड़ घड़ाहट से तालाब की नींव हिल गई और तालाब के टूटने से कई गाँव में पानी फैल गया हैं और फसल डूब गई हैं। इससे मेवाड़ सरकार को ३२ लाख रुपये का नुक्सान हो गया हैं। अंग्रेज सरकार इस नुक्सान की पूर्ति करे और जब तक इस नुक्सान की पूर्ति नहीं की जाएगी तब तक उनकी रेलगाड़ी मवाद सरकार के पास जब्त रहेगी। यह कहकर राणा जी ने अंग्रेजों की गाड़ी को जब्त कर लिया।

अंग्रेजों को जब राणा जी का उत्तर मिला तो वे चकित रह गये और अंत में उन्होंने राणा जी को रेलगाड़ी सौंप दी।

इस घटना से न केवल राणा जी की वीरता और स्वाभिमान का विवरण मिलता हैं अपितु अंग्रेजों द्वारा भारतीय रियासतों पर किये गये अत्याचार का भी मालूम चलता हैं।



अंग्रेजों के राज्य में भी राणा फ़तेह सिंह की वीरता और स्वाभिमान से आज भी हर भारतीय का मस्तक गर्व से ऊँचा हो रहा हैं।


इंकलाब एक संघर्ष

गुरुवार, 5 मार्च 2015

जानिये होलिका दहन की कथा

होली बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार है। होली में जितना महत्व रंगों का है उतना ही महत्व होलिका दहन का भी है। क्योंकि ये वही दिन होता है जब आप अपनी कोई भी कामना पूरी कर सकते हैं किसी भी बुराई को अग्नि में जलाकर खाक कर सकते हैं। होलिका दहन या होली भारत के उत्तरी भागों में मनाये जाने वाला त्यौहार है। होलिका दहन को हम होली के नाम से भी जानते हैं। जिस दिन होली जलाई जाती है, उसे हम छोटी होली भी कहते हैं। होलिका दहन से जुड़ी और कई सारी कहानियाँ हैं आइये जानें।

होलिका की कहानी

होलिकादहन की कथा हम सभी होली की पूर्व संध्या, यानी फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को होलिकादहन मनाते हैं। इसके साथ एक कथा जुड़ी हुई है। कहते हैं कि वर्षो पूर्व पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था। उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे, बल्कि उसे ही अपना आराध्य माने।

लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। उसने अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर अपनी ईश-भक्ति जारी रखी। इसलिए हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र को दंड देने की ठान ली। उसने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया। दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी। लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले। उसी समय से हम समाज की बुराइयों को जलाने के लिए होलिकादहन मनाते आ रहे हैं। सार्वजनिक होलिकादहन हम लोग घर के बाहर सार्वजनिक रूप से होलिकादहन मनाते हैं।

होलिका दहन की परंपरा

शास्त्रों के अनुसार होली उत्सव मनाने से एक दिन पहले आग जलाते हैं और पूजा करते हैं। इस अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। होलिका दहन का एक और महत्व है, माना जाता है कि भुना हुआ धान्य या अनाज को संस्कृत में होलका कहते हैं, और कहा जाता है कि होली या होलिका शब्द, होलका यानी अनाज से लिया गया है। इन अनाज से हवन किया जाता है, फिर इसी अग्नि की राख को लोग अपने माथे पर लगाते हैं जिससे उन पर कोई बुरा साया ना पड़े। इस राख को भूमि हरि के रूप से भी जाना जाता है।

होलिका दहन का महत्व

होलिका दहन की तैयारी त्योहार से 40 दिन पहले शुरू हो जाती हैं। जिसमें लोग सूखी टहनियाँ, सूखे पत्ते इकट्ठा करते हैं। फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है और रक्षोगण के मंत्रो का उच्चारण किया जाता है। दूसरे दिन सुबह नहाने से पहले इस अग्नि की राख को अपने शरीर लगाते हैं, फिर स्नान करते हैं। होलिका दहन का महत्व है कि आपकी मजबूत इच्छाशक्ति आपको सारी बुराईयों से बचा सकती है, जैसे प्रह्लाद की थी। कहा जाता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों ना हो जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है। इसी लिए आज भी होली के त्यौहार पर होलिका दहन एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

मदर टेरसा – संत या धोखेबाज


एग्नेस गोंक्झा बोज़ाझियू अर्थात मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे, मेसेडोनिया में हुआ था और बारह वर्ष की आयु में उन्हें अहसास हुआ कि “उन्हें ईश्वर बुला रहा है”। 24 मई 1931 को वे कलकत्ता आईं और फ़िर यहीं की होकर रह गईं। उनके बारे में इस प्रकार की सारी बातें लगभग सभी लोग जानते हैं, लेकिन कुछ ऐसे तथ्य, आँकड़े और लेख हैं जिनसे इस शख्सियत पर सन्देह के बादल गहरे होते जाते हैं। उन पर हमेशा वेटिकन की मदद और मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की मदद से “धर्म परिवर्तन” का आरोप तो लगता ही रहा है, लेकिन बात कुछ और भी है, जो उन्हें “दया की मूर्ति”, “मानवता की सेविका”, “बेसहारा और गरीबों की मसीहा”… आदि वाली “लार्जर दैन लाईफ़” छवि पर ग्रहण लगाती हैं, और मजे की बात यह है कि इनमें से अधिकतर आरोप (या कहें कि खुलासे) पश्चिम की प्रेस या ईसाई पत्रकारों आदि ने ही किये हैं, ना कि किसी हिन्दू संगठन ने, जिससे संदेह और भी गहरा हो जाता है (क्योंकि हिन्दू संगठन जो भी बोलते या लिखते हैं उसे तत्काल सांप्रदायिक ठहरा दिये जाने का “रिवाज” है)।
बहरहाल, आईये देखें कि क्यों इस प्रकार के “संत” या “चमत्कार” आदि की बातें बेमानी होती हैं (अब ये पढ़ते वक्त यदि आपको हिन्दुओं के बड़े-बड़े और नामी-गिरामी बाबाओं, संतों और प्रवचनकारों की याद आ जाये तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी) –

यह बात तो सभी जानते हैं कि धर्म कोई सा भी हो, धार्मिक गुरु/गुरुआनियाँ/बाबा/सन्त आदि कोई भी हो बगैर “चन्दे” के वे अपना कामकाज(?) नहीं फ़ैला सकते हैं। उनकी मिशनरियाँ, उनके आश्रम, बड़े-बड़े पांडाल, भव्य मन्दिर, मस्जिद और चर्च आदि इसी विशालकाय चन्दे की रकम से बनते हैं। जाहिर है कि जहाँ से अकूत पैसा आता है वह कोई पवित्र या धर्मात्मा व्यक्ति नहीं होता, ठीक इसी प्रकार जिस जगह ये अकूत पैसा जाता है, वहाँ भी ऐसे ही लोग बसते हैं। आम आदमी को बरगलाने के लिये पाप-पुण्य, अच्छाई-बुराई, धर्म आदि की घुट्टी लगातार पिलाई जाती है, क्योंकि जिस अंतरात्मा के बल पर व्यक्ति का सारा व्यवहार चलता है, उसे दरकिनार कर दिया जाता है।
पैसा (यानी चन्दा) कहीं से भी आये, किसी भी प्रकार के व्यक्ति से आये, उसका काम-धंधा कुछ भी हो, इससे लेने वाले “महान”(?) लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उन्हें इस बात की चिंता कभी नहीं होती कि उनके तथाकथित प्रवचन सुनकर क्या आज तक किसी भी भ्रष्टाचारी या अनैतिक व्यक्ति ने अपना गुनाह कबूल किया है? क्या किसी पापी ने आज तक यह कहा है कि “मेरी यह कमाई मेरे तमाम काले कारनामों की है, और मैं यह सारा पैसा त्यागकर आज से सन्यास लेता हूँ और मुझे मेरे पापों की सजा के तौर पर कड़े परिश्रम वाली जेल में रख दिया जाये..”। वह कभी ऐसा कहेगा भी नहीं, क्योंकि इन्हीं संतों और महात्माओं ने उसे कह रखा है कि जब तुम अपनी कमाई का कुछ प्रतिशत “नेक” कामों के लिये दान कर दोगे तो तुम्हारे पापों का खाता हल्का हो जायेगा। यानी, बेटा..तू आराम से कालाबाजारी कर, चैन से गरीबों का शोषण कर, जम कर भ्रष्टाचार कर, लेकिन उसमें से कुछ हिस्सा हमारे आश्रम को दान कर… है ना मजेदार धर्म…

बहरहाल बात हो रही थी मदर टेरेसा की, मदर टेरेसा की मृत्यु के समय सुसान शील्ड्स को न्यूयॉर्क बैंक में पचास मिलियन डालर की रकम जमा मिली, सुसान शील्ड्स वही हैं जिन्होंने मदर टेरेसा के साथ सहायक के रूप में नौ साल तक काम किया, सुसान ही चैरिटी में आये हुए दान और चेकों का हिसाब-किताब रखती थीं। जो लाखों रुपया गरीबों और दीन-हीनों की सेवा में लगाया जाना था, वह न्यूयॉर्क के बैंक में यूँ ही फ़ालतू पड़ा था? मदर टेरेसा को समूचे विश्व से, कई ज्ञात और अज्ञात स्रोतों से बड़ी-बड़ी धनराशियाँ दान के तौर पर मिलती थीं।

रॉबर्ट मैक्सवैल के साथ

अमेरिका के एक बड़े प्रकाशक रॉबर्ट मैक्सवैल, जिन्होंने कर्मचारियों की भविष्यनिधि फ़ण्ड्स में 450 मिलियन पाउंड का घोटाला किया, ने मदर टेरेसा को 1.25 मिलियन डालर का चन्दा दिया। मदर टेरेसा मैक्सवैल के भूतकाल को जानती थीं। हैती के तानाशाह जीन क्लाऊड डुवालिये ने मदर टेरेसा को सम्मानित करने बुलाया। मदर टेरेसा कोलकाता से हैती सम्मान लेने गईं, और जिस व्यक्ति ने हैती का भविष्य बिगाड़ कर रख दिया, गरीबों पर जमकर अत्याचार किये और देश को लूटा, टेरेसा ने उसकी “गरीबों को प्यार करने वाला” कहकर तारीफ़ों के पुल बाँधे।


मदर टेरेसा को चार्ल्स कीटिंग से 1.25 मिलियन डालर का चन्दा मिला, ये कीटिंग महाशय वही हैं जिन्होंने “कीटिंग सेविंग्स एन्ड लोन्स” नामक कम्पनी 1980 में बनाई थी और आम जनता और मध्यमवर्ग को लाखों डालर का चूना लगाने के बाद उसे जेल हुई थी। अदालत में सुनवाई के दौरान मदर टेरेसा ने जज से कीटिंग को “माफ़”(?) करने की अपील की थी, उस वक्त जज ने उनसे कहा कि जो पैसा कीटिंग ने गबन किया है क्या वे उसे जनता को लौटा सकती हैं? ताकि निम्न-मध्यमवर्ग के हजारों लोगों को कुछ राहत मिल सके, लेकिन तब वे चुप्पी साध गईं।

चार्ल्स कीटिंग के साथ
चार्ल्स कीटिंग को माफी के लिए कोर्ट मे दिया गया पत्र

ब्रिटेन की प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका Lancet के सम्पादक डॉ.रॉबिन फ़ॉक्स ने 1991 में एक बार मदर के कलकत्ता स्थित चैरिटी अस्पतालों का दौरा किया था। उन्होंने पाया कि बच्चों के लिये साधारण “अनल्जेसिक दवाईयाँ” तक वहाँ उपलब्ध नहीं थीं और न ही “स्टर्लाइज्ड सिरिंज” का उपयोग हो रहा था। जब इस बारे में मदर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “ये बच्चे सिर्फ़ मेरी प्रार्थना से ही ठीक हो जायेंगे…”(?)


बांग्लादेश युद्ध के दौरान लगभग साढ़े चार लाख महिलायें बेघरबार हुईं और भागकर कोलकाता आईं, उनमें से अधिकतर के साथ बलात्कार हुआ था। मदर टेरेसा ने उन महिलाओं के गर्भपात का विरोध किया था, और कहा था कि “गर्भपात कैथोलिक परम्पराओं के खिलाफ़ है और इन औरतों की प्रेग्नेन्सी एक “पवित्र आशीर्वाद” है…”। उन्होंने हमेशा गर्भपात और गर्भनिरोधकों का विरोध किया। जब उनसे सवाल किया जाता था कि “क्या ज्यादा बच्चे पैदा होना और गरीबी में कोई सम्बन्ध नहीं है?” तब उनका उत्तर हमेशा गोलमोल ही होता था कि “ईश्वर सभी के लिये कुछ न कुछ देता है, जब वह पशु-पक्षियों को भोजन उपलब्ध करवाता है तो आने वाले बच्चे का खयाल भी वह रखेगा इसलिये गर्भपात और गर्भनिरोधक एक अपराध है” (क्या अजीब थ्योरी है…बच्चे पैदा करते जाओं उन्हें “ईश्वर” पाल लेगा… शायद इसी थ्योरी का पालन करते हुए ज्यादा बच्चों का बाप कहता है कि “ये तो भगवान की देन हैं..”, लेकिन वह मूर्ख नहीं जानता कि यह “भगवान की देन” धरती पर बोझ है और सिकुड़ते संसाधनों में हक मारने वाला एक और मुँह…)


मदर टेरेसा ने इन्दिरा गाँधी की आपातकाल लगाने के लिये तारीफ़ की थी और कहा कि “आपातकाल लगाने से लोग खुश हो गये हैं और बेरोजगारी की समस्या हल हो गई है”। गाँधी परिवार ने उन्हें “भारत रत्न” का सम्मान देकर उनका “ऋण” उतारा। भोपाल गैस त्रासदी भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना है, जिसमें सरकारी तौर पर 4000 से अधिक लोग मारे गये और लाखों लोग अन्य बीमारियों से प्रभावित हुए। उस वक्त मदर टेरेसा ताबड़तोड़ कलकत्ता से भोपाल आईं, किसलिये? क्या प्रभावितों की मदद करने? जी नहीं, बल्कि यह अनुरोध करने कि यूनियन कार्बाईड के मैनेजमेंट को माफ़ कर दिया जाना चाहिये। और अन्ततः वही हुआ भी, वारेन एंडरसन ने अपनी बाकी की जिन्दगी अमेरिका में आराम से बिताई, भारत सरकार हमेशा की तरह किसी को सजा दिलवा पाना तो दूर, ठीक से मुकदमा तक नहीं कायम कर पाई। प्रश्न उठता है कि आखिर मदर टेरेसा थीं क्या?

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

महाशिवरात्रि महत्व

महाशिवरात्रि महत्व

महाशिवरात्रि को हिंदू धर्म में एक प्रमुख त्योहार के रूप में मनाय जाता हैं। महाशिवरात्रि को कालरात्रि के नाम से भी जान जाता हैं।
महाशिवरात्रि पर्व प्रति वर्ष फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता हैं। एसी मान्यता हैं कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शिवजी का ब्रह्मा रुप से रुद्र रूप में अवतार हुआ था। प्रलय के समय में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए समग्र ब्रह्मांड को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि कहाजाता हैं।
तीनों लोक की सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अपनी अर्धांगिनी बनाने वाले शिव सर्वदा प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप अनोखा हैं। शरीर पर स्मसान की भस्म, और गले में सर्पों की माला, कंठ में विष, जटा में शशी (चंद्र) एवं पतित पावनी गंगा तथा मस्तक पर प्रलय कारी ज्वाला हैं। नंदि (बैल) को वाहन बनाने वाले हैं।
शिव अमंगल रूप होकर भी अपने भक्तों का अमंगल दूर कर मंगल करते हैं और सुख-संपत्ति एवं शांति प्रदान करते हैं।

शिवरात्रि व्रत का लाभ:

हिंदू संस्कृति में महाशिवरात्रि भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन माना जाता हैं। शिवरात्रि पर अपनी आत्मा को निर्मल करने का महाव्रत माना जाता हैं। महाशिव रात्रि व्रत से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता हैं। व्यक्ति की हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती हैं। समस्त जीवों के प्रति उसके भितर दया, करुणा इत्यादि सद्द भावो का आगमन होता है।

ईशान संहिता में शिवरात्रि के बारे मे उल्लेख इस प्रकार किया गया है-

शिवरात्रि व्रतम् नाम सर्वपाम् प्रणाशनम्।
आचाण्डाल मनुष्याणम् भुक्ति मुक्ति प्रदायकं॥

भावार्थ:- शिव रात्रि नाम वाला व्रत समस्त पापों का शमन करने वाला हैं। इस दिन व्रत कर ने से दुष्ट मनुष्य को भी भक्ति मुक्ति प्राप्त होती हैं

ज्योतिष शास्त्र के अनुशार शिवरात्री व्रत का महत्व और लाभ:

चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिवजी हैं। ज्योतिष शास्त्रों में चतुर्दशी तिथि को परम शुभ फलदायी मना गया हैं। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने चतुर्दशी तिथि को होती हैं। परंतु फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया हैं। ज्योतिषी शास्त्र के अनुसार विश्व को उर्जा प्रदान करने वाले सूर्य इस समय तक उत्तरायण में आ होते हैं, और ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यंत शुभ कहा माना जाता हैं। शिव का अर्थ ही है कल्याण करना, एवं शिवजी सबका कल्याण करने वाले देवो के भी देव महादेव हैं। अत: महा शिवरात्रि के दिन शिव कृपा प्राप्त कर व्यक्ति को सरलता से इच्छित सुख की प्राप्ति होती हैं। ज्योतिषीय सिद्धंत के अनुसार चतुर्दशी तिथि तक चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जात्ता हैं। अपनी क्षीण अवस्था के कारण बलहीन होकर चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा(प्रकाश) देने में असमर्थ हो जाते हैं।
चंद्र का सीधा संबंध मनुष्य के मन से बताया गया हैं। ज्योतिष सिद्धन्त से जब चंद्र कमजोर होतो मन थोडा कमजोर हो जाता हैं, जिस्से भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं, और विषाद, मान्सिक चंचल्ता-अस्थिरता एवं असंतुलन से मनुष्य को विभिन्न प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता हैं।
धर्म ग्रंथोमे चंद्रमा को शिव के मस्तक पर सुशोभित बताय गया हैं। जिस्से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होने से चंद्रदेव की कृपा स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। महाशिवरात्रि को शिव की अत्यंत प्रिय तिथि बताई गई हैं। ज्यादातर ज्योतिषी शिवरात्रि के दिन शिव आराधना कर समस्त कष्टों से मुक्ति पाने की सलाह देते हैं।

सभी को शिवरात्री की शुभकामनाएं ।

बम बम भोले ॥
जय महाकाल ॥

शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

मर्दानी किरणदेवी और महाविलासी अकबर की दास्तां

अकबर प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज के मेले का आयोजन करता था, जिसमें वह सुंदर युवतियों को खोजता था, और उनसे अपने शरीर की भूख शांत करता है। 
एक बार अकबर नौरोज के मेले में बुरका पहनकर सुंदर स्त्रियों की खोज कर ही रहा था, कि उसकी नजर मेले में घूम रही किरणदेवी पर जा पड़ी। वह किरणदेवी के रमणीय रूप पर मोहित हो गया। किरणदेवी मेवाड़ के महाराणा प्रतापसिंह के छोटे भाई शक्तिसिंह की पुत्री थी और उसका विवाह बीकानेर के प्रसिद्ध राजपूत वंश में उत्पन्न पृथ्वीराज राठौर के साथ हुआ था। अकबर ने बाद में किरणदेवी का पता लगा लिया कि यह तो तुम्हारे ही गुलाम की बीबी है, तो उसने पृथ्वीराज राठौर को जंग पर भेज दिया और किरण देवी को अपनी दूतियों के द्वारा बहाने से महल में आने का निमंत्रण दिया। अब किरणदेवी पहुंची अकबर के महल में, तो स्वागत तो होना ही था और इन शब्दो में हुआ, ‘‘हम तुम्हें अपनी बेगम बनाना चाहते हैं।’’ कहता हुआ अकबर आगे बढ़ा, तो किरणदेवी पीछे को हटी...अकबर आगे बढ़ते गया और किरणदेवी उल्टे पांव पीछे हटती गयी...लेकिन कब तक हटती बेचारी पीछे को...उसकी कमर दीवार से जा ली।
‘‘बचकर कहाँ जाओगी,’’ अकबर मुस्कुराया, ‘‘ऐसा मौका फिर कब मिलेगा, तुम्हारी जगह पृथ्वीराज के झोंपड़ा में नहीं हमारा ही महल में है’’
‘‘हे भगवान, ’’ किरणदेवी ने मन-ही-मन में सोचा, ‘‘इस राक्षस से अपनी इज्जत आबरू कैसे बचाउ?’’
‘‘हे धरती माता, किसी म्लेच्छ के हाथों अपवित्र होने से पहले मुझे सीता की तरह अपनी गोद में ले लो।’’ व्यथा से कहते हुए उसकी आँखों से अश्रूधारा बहने लगी और निसहाय बनी धरती की ओर देखने लगी, तभी उसकी नजर कालीन पर पड़ी। उसने कालीन का किनारा पकड़कर उसे जोरदार झटका दिया। उसके ऐसा करते ही अकबर जो कालीन पर चल रहा था, पैर उलझने पर वह पीछे को सरपट गिर पड़ गया, ‘‘या अल्लाह!’’
उसके इतना कहते ही किरणदेवी को संभलने का मौका मिल गया और वह उछलकर अकबर की छाती पर जा बैठी और अपनी आंगी से कटार निकालकर उसे अकबर की गर्दन पर रखकर बोली, ‘‘अब बोलो शहंशाह, तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है? किसी स्त्री से अपनी हवश मिटाने की या कुछ ओर?’’
एकांत महल में गर्दन से सटी कटार को और क्रोध में दहाडती किरणदेवी को देखकर अकबर भयभीत हो गया।
एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है:
सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,
मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।
गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,
छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।
अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,
पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।
करले खुदा को याद भेजती यमालय को,
देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।
‘‘मुझे माफ कर दो दुर्गा माता,’’ मुगल सम्राट अकबर गिड़गिड़ाया, ‘‘तुम निश्चय ही दुर्गा हो, कोई साधारण नारी नहीं, मैं तुमसे प्राणों की भीख माँगता हूँ। यही मैं मर गया तो यह देश अनाथ हो जाएगा।’’
‘‘ओह!’’ किरणदेवी बोली, ‘‘देश अनाथ हो जाएगा, जब इस देश में म्लेच्छ आक्रांता नहीं आए थे, तब क्या इसके सिर पर किसी के आशीष का हाथ नहीं था?’’
‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ अकबर फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘पर आज देश की ऐसी स्थिति है कि मुझे कुछ हो गया तो यह बर्बाद हो जाएगा।’’
‘‘अरे मूर्ख देश को बर्बाद तो तुम कर रहे हो, तुम्हारे जाने से तो यह आबाद हो जाएगा। महाराणा जैसे बहुत हैं, अभी यहाँ स्वतंत्रता के उपासक।’’
‘‘हाँ हैं,’’ वह फिर बोला, ‘‘लेकिन आर्य कभी किसी का नमक खाकर नमक हरामी नहीं करते।’’
‘‘नमक हमारी,’’ किरणदेवी बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’
‘‘तुम्हारे पति ने रामायण पर हाथ रखकर मरते समय तक वफादारी का कसम खायी थी और तुमने भी प्रीतिभोज में मेरे यहाँ भोजन किया था, फिर यदि तुम मेरी हत्या कर दोगी तो क्या यह विश्वासघात या नमकहरामी नहीं होगी।’’
‘‘विश्वासघाती से विश्वासघात करना कोई अधर्म नहीं राजन,’’ किरणदेवी फिर गरजी, ‘‘तुम कौनसे दूध के धुले हो?’’
‘‘हाँ मैं दूध का धुला हुआ नहीं, पर मुझे क्षमा कर दो, हिन्दुओं के धर्म के दस लक्षणों मेें क्षमा भी एक है, इसलिए तुम्हें तुम्हारे धर्म की कसम, मुझे अपनी गौ समझकर क्षमा कर दो।’’
‘‘पापी अपनी तुलना हमारी पवित्र गौ से मत करो,’’ फिर वह थोड़ी सी नरम पड़ गयी, ‘‘यदि तुम आज अपनी मौत और मेरी कटारी के बीच में धर्म और गाय को नहीं लाते तो मैं सचमुच तुम्हें मारकर धरती का भार हल्का कर देती।’’ फिर चेतावनी देते हुए बोली, ‘‘आज भले ही सारा भारत तुम्हारे पांवों पर शीश झुकाता हो? किंतु मेवाड़ का सिसोदिया वंश आज भी अपना सिर उचा किए खड़ा है। मैं उसी राजवंश की कन्या हूँ। मेरी धमनियों में बप्पा रावल और राणा सांगा का रक्त बह रहा है। हम राजपूत रमणियाँ अपने प्राणों से अधिक अपनी मर्यादा को मानती हैं और उसके लिए मर भी सकती हैं और मार भी सकती हैं। यदि तु आज बचना चाहता है तो अपनी माँ और कुरान की सच्ची कसम खाकर प्रतिज्ञा कर कि आगे से नौरोज मेला नहीं लगाएगा और किसी महिला की इज्जत नहीं लूटेगा। यदि तुझे यह स्वीकार नहीं है, तो मैं अभी तेरे प्राण ले लूंगी, भले ही तूने हिन्दू धर्म और गौ की दुहाई दी हो। मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है।’’
अकबर को वास्तव में अनुभव हुआ कि तू मृत्यु के पाश में जकड़ा जा चुका है। जीवन और मौत का फासला मिट गया था। उसने माँ की कसम खाकर किरणदेवी की बात को माँ लिया, ‘‘मुझे मेरी माँ की सौगंध, मैं आज से संसार की सब स्त्राी जाति को अपनी बेटी समझूँगा और किसी भी स्त्राी के सामने आते ही मेरा सिर झुका जाएगा, भले ही कोई नवजात कन्या भी हो और कुरान-ए-पाक की कसम खाकर कहता हूँ कि आज ही नौरोज मेला बंद कराने का फरमान जारी कर दूँगा।’’
वीर पतिव्रता किरणदेवी ने दया करके अकबर को छोड़ दिया और तुरन्त अपने महल में लौट आयी। इस प्रकार एक पतिव्रता और साहसी महिला ने प्राणों की बाजी लगाकर न केवल अपनी इज्जत की रक्षा की, अपित भविष्य में नारियों को उसकी वासना का शिकार बनने से भी बचा लिया।
और उसके बाद वास्तव में नौरोज मेला बंद हो गया। अकबर जैसे सम्राट को भी मेला बंद कर देने के लिए विवश कर देने वाली इस वीरांगना का साहस प्रशंसनीय है।
संधर्भित पुस्तके -प्रख्यात ऐतिहासिक शोध ग्रंथ: वीर विनोद, उदयपुर से प्रकाशित
प्रचंड अग्नि, हिन्दी साहित्य सदन, नई दिल्ली
महाराणा प्रताप जीवनी...तेजपाल आर्य