शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

साम्प्रदायिक एवं हिंसा लक्षित अधिनियम - भारत की अखण्ड़ता पर प्रहार


सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाली गैर संवैधानिक, खुद को "सुपर संसद" बताने वाली राष्ट्रिय सलाहकार परिषद ने यह अधिनियम तैयार किया है, इसके २२ सदस्य खुद सोनिया गाँधी द्वारा चयनित है । इस गैर जरूरी संस्था द्वारा इस गैर जिम्मेदाराना अधिनियम को लाना भारत के संघीय स्वरूप को खत्म करने का प्रयास है । 9 अध्याय और 138 अनुच्छेद वाले इस अधिनियम सीधा सा उद्देश्य भारत में हिन्दूओं का खात्मा है । यह अधिनियम जम्मू कश्मीर को छोड़कर भारत के हर राज्य में लागु होगा क्योकि जम्मू कश्मीर में धारा 370 होने  से राज्य की अनुमति लेना आवश्यक है ।


इस अधिनियम के अनुसार दंगे सिर्फ बहुसंख्यक करता है और अल्पसंख्यक दंगो से पीड़ित होते हैं! इस अधिनियम के अनुसार अल्पसंख्यक मूस्लिम, ईसाई और अनुसूचित जाति व जनजाति है । यहाँ अनुसूचित जाति व जनजाति शब्द केवल सांत्वना के लिए जोड़ा गया है क्योंकि उनके लिए पहले ही "अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निरोधक अधिनियम 1989" है जिसका उद्देश्य उनकी अत्याचारो से रक्षा है अतः यह अधिनियम केवल और केवल धार्मिक अल्पसंख्यको के लिए है । यह अधिनियम मूसलमानो और इसाईयों को दंगो के लिए प्रोत्साहित करेगा और हिन्दू उन पर होने वाली कार्यवाही से हतोत्साहित होगा फिर उसके पास दो ही रास्ते होंगे या तो वो कायर बने या आतंकवादी ।

मान लिए जाए आपके शहर में दंगा होता है और अगर आप बहुसंख्यक है तो आप पीड़ित होकर भी प्रकरण दर्ज नहीं करा पाऐंगे पर यदि किसी अल्पसंख्यक ने आपके खिलाफ प्रकरण दर्ज कराया है तो उसे सबुत देने की आवश्यकता नहीं है, ये आपको साबित करना होगा कि आप निर्दोष हैं । अगर थानेदार अल्पसंख्यक की रिपोर्ट दर्ज नहीं करता तो उसकी नौकरी तक जा सकती है पर बहुसंख्यक की रिपोर्ट दर्ज करने के पूर्व उसे पुरी छानबीन करनी होगी कि रिपोर्ट सत्य है या नहीं और ना दर्ज करने पर उसकी नौकरी सूरक्षित रहेगी ।

यह सर्वमान्य है कि दंगे कि शुरूआत मूस्लिम समूदाय द्वारा किए गए कृत्यो द्वारा ही होता है परंतु इस अधिनियम के अनुसार यदि किसी बहुसंख्यक का घर जला दिया जाए अथवा किसी बहुसंख्यक महिला बलात्कर का शिकार हो तो इस अधिनियम के तहत वह अपराध की श्रेणी में नहीं आता ।



इसके अलावा यदि किसी बहुसंख्यक व्यक्ति से कोई अल्पसंख्यक किराए पर मकान, दुकान चाहता है या उसके यहाँ मजदूरी की इच्छा व्यक्त करता है और बहुसंख्यक व्यक्ति उसे मना कर दें तो अल्पसंख्यक बहुसंख्यक के विरूद्ध प्रकरण दर्ज करा सकता है । वो उसे धार्मिक कट्टरता, आतंकवाद जैसे मुद्दो पर फसा कर अपनी शत्रुता निकाल सकता है इसके लिए उसे किसी सबुत की आवश्यता नहीं, साबित तो उस व्यक्ति को करना होगा जिस पर आरोप लगे हैं इसके लिए उसे अपने बेगुनाह होने के सबुत तलाशने होंगे ।

इसके अधिनियम के अनुसार अल्पसंख्यको के विरूद्ध कुछ कहना, किसी भी प्रकार का गलत प्रचार करना अपराध है यदि किसी राज्य में हुए दंगे की घटना को कोई समाचार पत्र प्रकाशित करता है और उस पर अल्पसंख्यक ये आरोप लगाए कि यह अल्पसंख्यको के विरूद्ध नफरत फैला रहा है तो उस पत्रकार और उस संस्था के अध्यक्ष को गिरफ्तार कर लिया जाएगा । इस नियम के अनुसार गिरफ्तारी के लिए गैर जमानती वारंट होगा अथवा वारंट ना होने पर भी गिरफ्तार किया जा सकेगा ।


इस प्रस्तावित अधिनियम के प्रावधानो का क्रियांवन साम्प्रदायिक सौहार्द हेतु गठित राष्ट्रीय प्राधिकरण करेगी जिसमें 7 सदस्य होंगे जिसमें से 6 अल्पसंख्यक होंगे अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी अनिवार्य रूप से अल्पसंख्यक होंगे । इस अधिनियम के अनुसार अल्पसंख्यक को न्याय भी अल्पसंख्यक न्यायाधीश या अधिकारी ही दिला सकते हैं ।

इस प्राधिकरण का सदस्य बनने हेतु किसी भी विशेष योग्यता अर्थात उच्च या सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत न्यायाधीश होना जरूरी नहीं इसमें कोई भी नागरिक जिसका साम्प्रदायिक सौहार्द, मानव अधिकार इत्यादि विषयो में के प्रचार प्रसार में योगदान हो वो राष्ट्रीय अथवा राज्य प्राधिकरण का सदस्य बन सकता है ।

इस अधिनियम के अनुसार प्राधिकरण के चयनित 7 सदस्य किसी भी व्यक्ति के प्रति उत्तरदायी नहीं होगें । और उनको चुनने वालो में होंगे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री,लोकसभा में विपक्षी नेता तथा सभी प्रमूख राष्ट्रीय दलो के एक-एक सदस्य ।मतलब सात में से तीन तो कांग्रेस अपने पहुँचा ही देगी शेष साथी दलो की महरबानी तो रहेगी ही ।

राष्ट्रीय प्राधिकरण का सेना,सुरक्षाबलो, पुलिस तथा लोकसेवा के स्थानांतरण और पदस्थापन पर अधिकार होगा तथा सूरक्षाबलो और पुलिस को आदेश देने का अधिकार भी इसके पास होगा अर्थात किसी भी छोटी सी घटना या अफवाह के चलते भी राष्ट्रीय प्राधिकरण राज्य में हस्तक्षेप कर सकती है । प्राधिकरण राज्य सरकार के समस्त अधिकारो को अपने हाथ में ले सकती है और राज्य सरकार को बर्खास्त भी कर सकती है ।


चूँकि यह अधिनियम कांग्रेस पोषित गैर निर्वाचित संस्था एन. ए. सी. द्वारा बनाया गया है इसलिए ये चुनावी माहौल में अपनी डुबती नय्या को अल्पसंख्यको के सहारे पार करने की एक आखरी कोशिश है कांग्रेस मूसलमानो को यह बताना चाहती है वो ही उनकी सबसे बड़ी शुभचिंतक है इसके अतिरिक्त कोई नहीं ।

इस अधिनियम के अनुसार अगर दंगो की शुरूआत मूसलमान करते हैं तो भी दोषी हिन्दू ही होगा । उदाहरण के लिए गोधरा काण्ड़ में मारे गए कारसेवक हिंसा का शिकार नहीं होंगे, ना ही उन्हे कोई सहायता दी जा सकेगी इसके विपरीत हिंसा करने वाले मूस्लिम अगर प्रकरण दर्ज करवा दें तो बिना सबुत, बिना वारंट पीड़ित हिन्दु को जेल भेज दिया जाएगा और तब तक उसे नहीं छोड़ा जाएगा जब तक वो खुद को निर्दोष साबित ना कर दे ।


आपके मन में प्रश्न होगा पश्चिम बंगाल के कई जिलों में तो मूस्लिम बहुसंख्यक है तो क्या इस अधिनियम में उन्हे बहुसंख्यक माना जाएगा ?

इसका उत्तर है नहीं । इस अधिनियम के अनुच्छेद 3 के अनुसार यह अधिनियम राज्यवार लागु होगा अर्थात पुरे पश्चिम बंगाल राज्य के हिसाब से हिन्दू बहुसंख्यक है इसलिए उन जिलो में भी जहाँ मूस्लिम बहुसंख्यक है उन्हे अल्पसंख्यक ही माना जाएगा ।


इस अधिनियम का लागु होना असंभव ही नज़र आता है पर सोनिया और उसकी ब्रिगेड़ का असली चेहरा लोगो के सामने लाना भी ज़रूरी है । अपने आप को भारत भाग्य विधाता बताने वाली कांग्रेस इस सांम्प्रदायिक अधिनियम को लाना चाहती है इससे दंगे कम नहीं होंगे बल्कि बढ़ेंगे । भाजपा और उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने इसका विरोध भी किया है जिसके चलते कांग्रेस की मूश्किले बढ़ गई हैं । संघ और विश्व हिन्दू परिषद ने भी एक व्यापक विरोध की चेतावनी दी है जिसके चलते कांग्रेस इसमें बदलाव को भी तैयार हुई है पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक शब्द हटाने तक ही ये बदलाव सीमित है, इस अधिनियम का एक भी अनुच्छेद अगर लागु किया जाए तो वो भारत की शांति और अखण्ड़ता के लिए प्राणघातक ही होगा ।

सूर्य प्रताप सिंह शक्तावत

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