सोमवार, 23 सितंबर 2013

क्या साँईं हिन्दू समाज में ईश्वर के स्थान पर पूजनीय है? 


(एक विश्लेषण ...)

पिछले कुछ वर्षो में शिरड़ी साँईं के चरित्र को भगवान के सद्रश पूजा जा रहा है और साँईं भक्ति में असामान्य वृद्धि हो रही है  । साँईं मंदिर में करोडो का चढ़ावा आता है. साँईं के अनेको भक्त उनको भगवान की तरह पूजते है. व्रत, पूजा किया करते है. और उनका मानना है कि साँईं उनकी मनोकामना पूर्ण करते है ।

अब प्रश्न यह उठता है कि यह साँईं है कौन ? उनकी ऐतिहासिक पुष्ठभूमि क्या है? और वह ईश्वर किस प्रकार घोषित किया गया ?

साँईं - (28 September 1835 – 15 October 1918)

साँईं के माता पिता और गुरु इत्यादि के बारे मे कोई प्रामाणिक सन्दर्भ नहीं मिलता । उनका जन्म २८ सितम्बर १८३५ को हुआ, और मृत्यु १५ अक्तूबर १९१८ में हुई. प्रमाणिक सन्दर्भ बताते है कि वह एक मुस्लिम फ़क़ीर था. किन्तु तत्कालीन हिन्दू बहुसंख्यक प्रदेश शिरड़ी - महाराष्ट्र में उसका डेरा होने के कारण हिन्दुओ में लोकप्रियता हेतु उसने हिंदू धर्म का मुखोटा स्वीकार किया और "ईश्वर-अल्लाह एक" का नारा दिया... साथ ही "श्रद्धा और सबुरी" , "सब का मालिक एक" , "अल्लाह-ईश्वर" जैसे अनेक नारे दिए । वह जहाँ रहता था उस जगह का उसने "द्वारकामाई" नाम दिया. जो आज भी शिरड़ी में है । उसने असामान्य जादुई करतब और चमत्कार द्वारा जन-सामान्य को अपनी और खीचा. तत्वज्ञान के नाम पर अथवा शास्त्र ज्ञान के नाम पर उसकी न कोई रचना और न कोई प्रवचन इत्यादि प्रचलित व प्राप्त है । हिन्दुओ की कट्टरता दूर कर सेक्युलर बनाने में साँईं का एक बहुत बड़ा हाथ रहा है । उसके सभी भक्त आज भी उसके चमत्कार और जादुई करतबों से ही प्रभावित हो कर उसकी तरफ खीचते जाते हैं. जो उन्होंने किसी और के द्वारा सुन रखे हैं ।

यह हुई उसके जीवन चरित्र से जुडी कुछ बाते. अब हम उसके पूज्य होने - न होने पर एवं उसकी लाभ-हानि पर विचार करते है ।

तर्क १ - क्या साईं को पूजना उचित है क्युकि स्वयं कृष्ण ने गीता में विभूति की बात कही है ।

साँईं के भक्तो व श्रद्धालुओ में कुछ तार्किक लोग भी है, जो गीता के अध्याय १० के ४१ वे श्लोक का उदाहरण देते है और कहते है कि स्वयं भगवन कृष्ण ने कहा है  "यद्यद्विभुती मत्सत्वं....तेजोऽशसंभवं" अर्थात "विश्व में जो कोई भी विभूति है उसको तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति जान". साँईं के भक्त इस श्लोक को आधार बना कर यह कहते है की साMईं भी इश्वर की ही विभूति है ।

निराकरण - ऐसा कहने वाले लोगो से पूछा जाए की विभूति होने - ना होने का मापदंड क्या है? क्या जादू-चमत्कार से प्रभावित कर लेना विभूति हो जाना होता है? ऐसे तो जादूगर भी हजारो-लाखो की भीड़ को प्रभावित करता है तो क्या वह ईश्वर हो गए? क्या साँईं ने कोई तत्वज्ञान अथवा शास्त्रादी का अध्ययन कर कोई सामजिक क्रांति, अथवा वैदिक धर्म रक्षण हेतु, वेद शास्त्र रक्षण हेतु कार्य किया कि उन्हें ईश्वर आदि की उपाधि दी जाए? क्या वह शिव, विष्णु इत्यादि ईश्वर की ऐतहासिक और शास्त्रीय मान्यता से प्रमाणित है? क्या हिन्दू शास्त्रों ने इसकी मान्यता दी है? तो किस आधार पर उसे ईश्वर की उपाधि दी जानी चाहिए?

तर्क २ - कुछ लोग कहते है कि साईं को ईश्वर मान लेने से हिन्दू मुस्लिम बनने से बच गए, क्युकि साँईं मुस्लिम होता तो सभी साँईं भक्त मुस्लिम हो जाते जैसे बुद्ध-महावीर का हुआ वैसे साँईं का न हो इसीलिए अन्य सम्प्रदाय बनने से हिन्दू समाज विभक्त न हो इस लिए साँईं को हिन्दू भगवान बना दिया गया ।

निराकरण - ऐसा नहीं है, आप कहते है कि साँईं को ईश्वर मान लेने से और हिन्दू धर्म से जोड़ लेने से एक अलग सम्प्रदाय बनने से और साँईं भक्तो के मुस्लिम बनने से रोका गया । लेकिन यह बात गलत है. क्युकि मुस्लिम के शिया-सुन्नी दोनों ही सम्प्रदाय अल्लाह के सिवा किसी और का अस्तित्व मान्य ही नहीं करते. उन्होंने साँईं को मान्य नहीं किया इसीलिए तो साँईं ने हिन्दू धर्म का आश्रय लिया । अधिक से अधिक साँईं की हेसियत इस्लाम में जीते हुए एक फ़क़ीर और मरने के बाद शायद पीर जितनी ही होती. और हम परिणाम के पूर्व कोई घोषणा नहीं कर सकते.साँईं जब तक जीवित थे तब तक उनके भक्तो की संख्या इतनी नहीं थी कि जिसके आधार पर हिन्दू समाज के एक बहुत बड़ा हिस्सा अन्य सम्प्रदाय की ओर बढता और अगर आप कहें कि बुद्ध-महावीर का जैसा हुआ वैसा साँईं का न हो इसीलिए उसको ईश्वर माना गया...तो महोदय, बुद्ध और महावीर तो स्वतन्त्र दर्शन के स्थापक थे । बुद्ध (विज्ञान और शून्य वाद) और महावीर (जैन) आदि समाज के संस्थापक है. और यह उनके चमत्कार-जादू इत्यादि के कारण नहीं अपितु उनके दर्शन एवं विचार के आधार पर हुआ. साँईं के पास इस प्रकार के दर्शन का अभाव है. अतः साँईं को न मानने से कोई हानि न होती ।

भोले भाले हिन्दू समाज के लोग मन्नत इत्यादि पूर्ति के लिए साँईं के दरबार में जाते है । क्युकि उनको अपने दुखो से निवारण चाहिए । लेकिन यह वह शुद्ध भक्ति नहीं है जो ईश्वर के प्रति होनी चाहिए और न साँईं को ईश्वर कहा जा सकता है ।
यही कारण है की निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे पाखंडियो को भी पूजा जाता है और उनके दरबार करोडो में बिकते है. एक बात याद रखनी चाहिए जितने खंड खंड में आप बटोंगे उतने ही आप कमजोर हो जाओगे ।



साँई को हिन्दु समाज में कब लाया गया ?

12 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार की हत्या हुई, गुलशन कुमार ने अपने जीवन में कभी साँईं का प्रचार नहीं किया । जीवन भर उन्होंने केवल शिव हनुमान और देवी की उपासना में बिता दिया । आखिरी समय भी वे शिव जी के दर्शन करके लौट रहे थे तब उनकी हत्या हुई थी, कही न कही तो कुछ गड़बड़ थी जो अब जांच करने भी पता नहीं लग सकती ।
जब तक गुलशन कुमार थे, शिर्डी के साँईं संस्थान की हिम्मत नही हुई थी साँईं का प्रचार करने की । यदि किया भी था तो इतना अधिक प्रभावित नहीं हुआ था की जनमानस में फ़ैल सके, क्यूंकि लोगो के दिलो में तो तब गुलशन कुमार के भजन और भेंटे इतनी अधिक लोकप्रिय थी कि साँईं जैसे टुच्चे नए भगवान उसमे समा ही नहीं पाते ।
गुलशन कुमार की हत्या के ठीक 6 महीने बाद 1998 में साँईं नाम के एक नए भगवान का अवतरण हुआ ।
इसके कुछ समय बाद May 28, 1999 में बीवी नंबर 1 फिल्म आई जिसमे साँईं के साथ पहली बार राम को जोड़कर ॐ साँईं राम गाना बनाया था, न किसी हिन्दू संगठन का इस पर ध्यान गया और न किसी ने इस पर आपत्ति की ।
पहला षड्यंत्र कामयाब,
इस नए भगवान की एक खासियत थी ..
इसे लोग धर्मनिरपेक्ष अवतार कहते थे, जिसने हिन्दू मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया था । वो अलग बात है कि उसी चिलम बाबा उर्फ़ साँईं बाबा के समय में कई दंगे हुए, बंगाल विभाजन हुआ, मोपला दंगे हुए, मालाबार में हजारो हिन्दुओ को काटा और साँईं को अल्लाह का भक्त बना दिया गया ।
अब इस नए भगवान की एक और खासियत थी, नाम हिन्दुओ का प्रयोग हो रहा था और जागरण में अल्लाह अल्लाह गाया जा रहा था ।
वैसे मुसलमान ये कहते है की केवल अल्लाह पूजनीय है उसके अतिरिक्त कोई नहीं ।
पर अल-तकिया नाम की चीज भी कुछ होती है, उसे कब अमल में लाते, इसलिए शुरू हुआ साँईं अल्लाह का प्रचार ।
लोगो को ये नया घटिया कान्सेप्ट बड़ा पसंद आया, वैसे भी देश में भेडचाल है, अंधे के पीछे आँख वाला पट्टी बंद कर चलता है ।

साँई के विषय में कुछ बातें शिर्डी साँई संस्थान द्वारा प्रमाणित साँई सत्चरित्र से
क्या इतनी हिन्दू विरोधी बातो से भी हिन्दुओ की आँखे नहीं खुलती ?

अध्याय 4, 5, 7 - साईं बाबा के होंठो पर सदैव "अल्लाह मालिक" रहता था ।

अध्याय 38 - मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वे "मौलवी से फातिहा" पढने के लिए कहते थे ।

अध्याय 18, 19 - इस मस्जिद में बैठ कर मैं सत्य ही बोलुगा की किन्ही साधनाओ या शास्त्रों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं है ।

अध्याय 10- न्याय या दर्शन शास्त्र या मीमांसा पढने की आवश्यकता नहीं है ।

अध्याय 23 - प्राणायाम, श्वासोंचछवासम हठयोग या अन्य कठिन साधनाओ की आवश्यकता नहीं है ।

अध्याय 28 - चावडी का जुलुस देखने के दिन साईं बाबा कफ से अधिक पीड़ित थे ।

अध्याय 43, 44 - 1886 मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन साईं बाबा को दमा से अधिक पीड़ा हुई ।

यही नहीं इसमें साईं के प्रसाद में मांस मिलाने और एक ब्राह्मण को मांस मिला भोजन खिलाने के लिए बाध्य करने के कुछ प्रमाण है ।

सनातनी परंपरा में केवल इश्वर, अवतार, या देवता की पूजा ही मान्य है उसके अलावा सभी एक तरह से पाखंड ही है ।
चूँकि साईं न इश्वर है न देवता और न अवतार इसलिए वह भी एक प्रकार से पूजनीय व्यक्तियों की श्रेणी में नहीं आता, एक साधारण इंसान होते हुए भी उसे इश्वर की तरह पूजा जाना सनातन धर्म का ही घोर अपमान है ।

यहाँ से साँई सत्चरित्र डाउनलोड करे ले और इसे एक बार ज़रुर पढे-


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