गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013


                 एक गांव जहाँ मां देती है बेटी की हत्‍या का हुक्‍म



क्‍या आपने कभी जिंदगी और मौत को एक साथ किसी घर में दस्‍तक देते सुना है? हो सकता है यह सुनने में आपको थोड़ा अजीब लगे मगर आजाद हिंदुस्‍तान का एक इलाका ऐसा है, जहां जिदंगी और मौत दोनो एक साथ दाखिल होते हैं। ये वो इला‍का है जहां अगर बेटियां पैदा होती हैं, तो उनकी मां खुद उसे जान से मारने का हुक्‍म दे देती है।

जी हां राजस्‍थान के जैसलमेर और बाड़मेड के बीच देवड़ा गांव में मौत के पहरे के बीच जिंदगी का सफर शुरु होता है। इस अजीबो-गरीब परंपरा के बारे में हम आपको इसलिये बता रहे हैं, क्‍योंकि जब दिल पर लगेगी तभी तो बात बनेगी। गांव में बेटियों का अकाल इस कदर है कि पिछले 110 सालों से उस गांव में किसी की बारात नहीं आई। 110 साल बाद उस गांव में बारात आई तो लोग हैरान हो गये कि इस गांव में किसकी बेटी रह गई थी, जिसकी बारात आई है।

तो आईए पहले इस शादी के बारे में छोटी सी चर्चा कर लें। दरअसल देवड़ा के एक परिवार में बेटी ने जन्‍म लिया। घर वाले उसे मारना नहीं चाहते थे, लिहाजा उन लोगों ने पैदा होते ही उसे लड़के की तरह पालना शुरु कर दिया। लड़कों की तरह कपड़े पहनना और उन्‍हीं के बीच उठना बैठना। ऐसा कर घर वालों ने लड़की की जिंदगी बचा ली और जब वह बड़ी हुई तो उसे मार देना का ख्‍याल समाज के मन से निकल गया। बीते फरवरी माह में ही उसने अपना पांव डोली में रखा जो 110 साल बाद संभव हो सका है।

जन्‍म से पहले ही जारी हो जाता है मौत का फरमान राजस्‍थान के देवड़ा गांव में लोगों के लिये बेटियां आज भी अभिशाप और बोझ बनी हुई हैं। बच्‍ची पैदा होते ही घर वाले या रिश्‍तेदार उसकी हत्‍या कर देते हैं। अगर घर वाले या रिश्‍तेदार हत्‍या नहीं करना चाहते तो गांव की दाई को इसका हुक्‍म दे दिया जाता है, कि अगर बेटी पैदा हो तो उसे फौरन जान से मार दे।

अब हम जो आपको बताने जा रहे हैं उसे जानने के बाद आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे। बेटियों को मारने के लिये मुं‍ह में नमक ठूस दिया जाता है। यह तो फिर भी कम है कहीं-कहीं तो अफीम पिला दी जाती है या फिर मुं‍ह और नाक में बालू ठूस दी जाती है।
किसी को हत्‍या का शक ना हो इसलिये कई बार मां ही बेटी का नाक और मुंह बंद कर देती है या फिर उसके उपर भारी तकिया रख दिया जाता है। मौत के बाद कह दिया जाता है कि बच्‍ची मरी हुई ही पैदा हुई थी। इस पूरे मामले में खौफनाक बात यह है कि जिस मां ने अपने कोख में बच्‍चे को 9 माह तक पाला हो उसे ही घर वाले यह आदेश देते हैं कि वह खुद उसकी हत्‍या करे।

मुश्‍किल है लड़कियों का दीदार होना पश्चिम राजस्‍थान के तेवड़ा, तेजमालता, मोढ़ा और डेगरी वो गांव है जहां बेटियों का दीदार किस्‍मत वालों को ही होता है। इन इलाको के लोग शादी करना तो चाहते हैं मगर उन्‍हें लड़कियां नहीं मिलतीं। मिलेंगी भी कैसे जब पैदा होने से पहले या फिर पैदा होने के तुरंत बाद उन्‍हें जान से मार दिया जाता है।


गैर सरकारी संस्‍थान लोक शक्ति विकास के सर्वे के आकंडों पर ध्‍यान दें तो बाड़मेड़ में स्‍त्री पुरूष अनुपात 791 है जबकि जैसलमेर में 807। देवड़ा में ये आंकड़े इनसे सैकड़ों कम हैं। सदियों पुरानी है बेटियों को जान से मारने की यह परंपरा गांव में जाकर और लोगों से घुल मिल जाने के बाद यह पता चलता है कि यहां बेटियों को मारने का परपंरा सदियों से चला आ रहा है। लोग कहते हैं कि मुगल काल के दौरान नवाब राजपूतों को अपमानित करने के लिये उनकी कुवांरी लड़कियों को अगवा कर ले जाते है। उसके बाद उन लड़कियों का बलात्‍कार करने के बाद उन्‍हें छोड़ दिया जाता था या फिर रखैल बना लिया जाता था। इस अपमान से बचने के लिये लोगों ने बेटियों को पैदा होते ही मारना शुरु कर दिया। उसके बाद से ही यह परंपरा चली आ रही है।

परंपरा में थोड़ा बदलाव आया मगर तबतक नये दौर ने दश्‍तक दे दी और फिर दहेज के लिये बे‍टियों को मारा जाना शुरु हो गया। जिन बेटियों को पैदा होने से पहले या पैदा होने के तुरंत बाद मार दिया गया अगर वह बोल सकती तो शायद यही बोलती “मेरे हाथ इतने छोटे और कोमल है कि आपको पकड़ कर रोक नहीं सकती, अगर द‍हेज के लिये मुझे मार रही हो तो इसकी फिक्र ना करो मां… बड़ी होकर मैं अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊंगी और फिर तुम्‍हारे घर से डोली में बैठकर चली जाऊंगी… मुझे अभी से जाने को ना कहो मां“।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें